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औरतें

aurten

अंबरीश

अन्य

अन्य

अंबरीश

औरतें

अंबरीश

देर रात गए

जब सब सो रहे होते

तो जागती

ख़ाली गलियों में

चौकीदारों की सीटियाँ

डोंगे में रखे साफ़ किए

भिगोए राजमा

और जाग लगाया हुआ

ढका धरा दूध-दही।

पहरे पर होतीं असंख्य घरों में

अनगित घरवालियों की दूरदृष्टि

मुँह अँधेरे जागने को

सो रही होती, साफ़-सुथरी रसोई

दिन-भर और रात देर तक औरतें

आँगन में, सब्ज़ी मंडी में

फिरतीं, घूमती भरी-भरी

लेकिन रसते बसते घरों की वे हाँड़ियाँ

संतोष से कभी

ख़ाली नहीं होतीं

अनजान समय से

जन्म देती रही बच्चों को

रक्षा, रख-रखाव अग्नि की

लीप-पोत रहीं चूल्हे

बुन रहीं, बनाती दरियों पर, मोर-तोते

और निकाल रहीं

फुलकारियों में सपने

नलों में से पानी।

समय से पहले चले जाना

स्वेटरों के लिए नए रंग की बुनाई मिलना

पति के पसंद की, सब्ज़ी की महँगाई

देखने को उनके छोटे-छोटे सरोकार

लेकिन उनसे मुक्त होकर ही आदमी

हो सकते हैं आज़ाद

जूझने के लिए

बड़े-बड़े सवालों के साथ।

उम्र-भर औरतें ख़ुद को

दोनों हाथों ख़र्चतीं

फिर भी अपने आँगन में घूमतीं

पत्नियाँ होने की प्रसन्नता

उनकी चूड़ियों में छनकती

धोए जा रहे पतीलों में ठनकती।

नलों से बह रहे

पानी के साथ

पानी की जलधारा

थपथप के साथ

वे रसोईयों

ग़ुसलख़ानों में

मनचाहा गुनगुनातीं।

स्रोत :
  • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 501)
  • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
  • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2014

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