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औरत

aurat

चंद्रकांत देवताले

अन्य

अन्य

और अधिकचंद्रकांत देवताले

    वह औरत

    आकाश और पृथ्वी के बीच

    कब से कपड़े पछीट रही है

    पछीट रही है, शताब्दियों से

    धूप के तार पर सुखा रही है

    वह औरत आकाश और धूप और हवा से

    वंचित घुप्प गुफा में

    कितना आटा गूँथ रही है?

    गूँथ रही है मनों सेर आटा

    असंख्य रोटियाँ

    सूरज की पीठ पर पका रही है

    एक औरत

    दिशाओं के सूप में खेतों को

    फटक रही है

    एक औरत

    वक़्त की नदी में

    दोपहर के पत्थर से

    शताब्दियाँ हो गईं

    एड़ी घिस रही है,

    एक औरत अनंत पृथ्वी को

    अपने स्तनों में समेटे

    दूध के झरने बहा रही है

    एक औरत अपने सिर पर

    घास का गट्ठर रखे

    कब से धरती को

    नापती ही जा रही है

    एक औरत अँधेरे में

    खर्राटे भरते हुए आदमी के पास

    निर्वसन जागती

    शताब्दियों से सोई है

    एक औरत का धड़

    भीड़ में भटक रहा है

    उसके हाथ अपना चेहरा ढूँढ़ रहे हैं

    उसके पाँव

    जाने कब से

    सबसे

    अपना पता पूछ रहे हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : जहाँ थोड़ा-सा सूर्योदय होगा (पृष्ठ 34)
    • रचनाकार : चंद्रकांत देवताले
    • प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
    • संस्करण : 2008

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