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औरत

aurat

अखिलेश जायसवाल

अन्य

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और अधिकअखिलेश जायसवाल

    सदियों से वह घोषित है—एक पुस्तक

    जिसके मुख पृष्ठ पर ही

    स्वामित्व की लाठी लिए

    टंका है एक हस्ताक्षर

    या फिर 'सप्रेम भेंट' जैसा

    वस्तुवादी जुमला।

    पढ़ी गई है सोते-जागते,

    उजाले में, अँधेरे में,

    कभी चोरी से

    तो कभी सीना-ज़ोरी से

    और ढोती रही है

    थूक लगी अँगुलियों के निशान,

    अहम,असहमति संदेह के गहरे निशान

    और अगले संस्करण का प्रावधान॥

    कभी दाँव पर लगी थी

    जुए में एक औरत

    और देखते-देखते

    पाँसों में ढल गया था उसका प्रारब्ध।

    एक बार जीती गई थी

    स्वयंवर में एक औरत

    और टूक-टूक हो गई थीं

    उसके अभिसार की सलहग रातें।

    कभी विवस्त्र की‌ गई थी एक औरत

    और नियंताओं की नीति

    चली गई थी मस्तिष्क से मलाशय में।

    और जब धकेली गई एक औरत

    चौखट के बाहर

    कपड़े नोचने वाले काँटे उग आए

    रास्तों में।

    हर बार अपने छीजते आधिपत्य

    और खुले चूतड़ों को ढंकने के लिए

    औरत की पैबंद लगाई है

    दोयम दर्जे के ईश्वरों ने।

    पशुता से प्रेम की रोमांचक छलाँग में

    उसके पैरों के नीचे औरत थी,

    लेकिन उसने सुरक्षित रख लीं

    अपनी पूछें, नाख़ून, दाँत और नीली आँखें,

    उसने सुरक्षित रखे हैं वे सभी रास्ते

    जो जाते हैं आदिमकालीन खोहों और जंगलों को,

    और यही नहीं

    उसकी सारी धमकियाँ, गालियाँ और हिक़ारतें

    यहीं से, इन्हीं से (गुह्याँगों से) शुरू होती है

    और ईश्वर बनने की थकान भी

    यहीं आकर मिटती है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अखिलेश जायसवाल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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