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आत्मजा

atmja

अनुवाद : शंकर लाल पुरोहित

सरोजिनी षडंगी

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    मैं तुम्हारी लाड़ली

    तन्मयी तनुजा

    मैं तुम्हारी हिरण्मयी

    आभा लेकर

    खड़ी होऊँगी

    तुम्हारा आलेख लेकर

    खिलूँगी।

    तुम्हारा आकार लेकर

    विकसित होऊँगी...

    गुमती... भींगती होऊँगी...

    तुम्हारी नेह-ममता की

    पुण्य गंगोत्री में।

    मैं एक बार तुम्हें

    जन्म पर माँ कह

    देखूँगी ग़ौर से

    हृदय के परदे पर

    तुम्हारी उस ज्योतिर्मयी

    मूर्ति को सजाए रखूँगी चिर दिन—

    एक बार नहीं

    जन्म लूँगी बार-बार

    बनकर आत्मजा तुम्हारे प्राणों की।

    मैं बनूँगी

    तुम्हारे हाड़-माँस से

    मैं तैरूंगी संचरण करूँगी

    तुम्हारे स्नायु-स्रोत में

    पल्लवित होऊँगी,

    फैलाकर प्रशाखा भ्रूण से

    महाद्रुम बनूँगी।

    माँ मेरी

    जन्म दो मुझे

    मुक्ति दो मुझे एक बार

    जीवन्यास दो मुझे एक बार

    विशाल इस विश्व की

    विमुग्ध कहानी को

    सुनने दो जी-भर।

    तुम मेरी जन्मदात्री

    तुम्हारे जठर से एक दिन

    जनमूँगी कन्या बनकर

    चंद्रकला-सी फिर

    दिनों दिन दिखूंगी उज्ज्वल,

    माँ, सच बोलो एक बार,

    जन्म दोगी या नहीं मुझे एक बार

    अपर के श्लेष मिले

    वाक्य की चोट सुन

    सच क्या बन जाओगी

    निर्मम घातक???

    मैं तुम्हारे लोहित देह से

    फिर जन्म लूँगी

    बनकर मनस्विनी

    बनकर मृणालिनी मैं

    भर दूँगी महक में

    दिग-दिगंत तक

    मंदाकिनी बन मैं

    बह जाऊँगी हिमालय से कुमारिका तक—

    तपस्विनी मन लेकर

    तेजस्विनी रूप लेकर

    मैं बनूँगी विश्व में

    अनूठा विभोर विस्मय।

    पता नहीं तुमने

    क्या सोचा है मेरा रूप,

    पर देखने तुम्हारा रूप

    संत्रस्त ये आँखें और

    पूरी देह में अजीब उच्चाट

    सुनती हो या नहीं

    मेरी भाषा तुम!

    तुम्हारी भाषा बोलने

    अब तक खुले नहीं मेरे होंठ।

    आज अगस्त के

    क्रांति दिवस पर

    निचोड़कर माटी पर

    रक्त लिपे दोनों हाथ से

    सच कहो माँ मेरी,

    शपथ लोगी तो

    —भ्रूण हत्या नहीं, नहीं

    जन्म लेंगी, एक नहीं

    शत-शत शिशु कन्याएँ

    सहस्रों कन्याएँ

    और तुरंत बनेंगी वे

    एक-एक दीप्त याज्ञसेनी,

    हजारों कन्याएँ

    सहसा बन जाएँगी

    रुद्राक्षरी, ऋतांबरी

    पुण्य हिरण्मयी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा (पृष्ठ 243)
    • संपादक : शंकरलाल पुरोहित
    • रचनाकार : सरोजिनी षडंगी
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2009

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