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अर्ज़ी

arzi

रामजी तिवारी

अन्य

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और अधिकरामजी तिवारी

    पूछते हैं टॉलस्टाय—

    ‘एक आदमी को आख़िर कितनी ज़मीन चाहिए’,

    कहते हैं सिकंदर—

    ‘मुट्ठियाँ ख़ाली हों मछलियों की उल्टी हुई आँखों जैसी

    अंतिम यात्रा तो इतनी हसीन चाहिए’

    बताता है इतिहास हमें—

    जो चाल के नरक में घिसटते हैं आज

    उन मुग़लों के पूर्वज कभी संपूर्ण भारत के स्वामी थे,

    और

    दफ़न हैं इतिहास की क़ब्र में वे सब के सब

    जिनका सूरज सदा चमकता था

    जो दुनिया से भराते थे पानी।

    अपने साथियों द्वारा दिए इन उदाहरणों पर वे

    तनिक सोचते हैं, मुस्कुराते हैं,

    और मन ही मन बुदबुदाते हैं :

    ‘आदमी को अटल रहना चाहिए अपने निर्णयों पर

    मैं इनके हाथ नहीं आऊँगा,

    क्योंकि यदि भविष्य में

    सब कुछ ऊपर ले जा सकने वाली अर्ज़ी

    मंजूर हो गई

    तब तो मैं भी इन मूर्खों जैसा

    हाथ मलता रह जाऊँगा।’

    स्रोत :
    • रचनाकार : रामजी तिवारी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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