ई प्रकाश नकली अछि
धोखा अछि, अखुनका इजोरियाक चकाचौंध
दौड़ैत गाड़ी,
मञ्चित नाट्य
दिनुका संगीत
आ बहुत किछु,
कुटिलता अछि
ओतमे नुकायल अन्हारक।
एहिमे सुगबुगाइत भीड़
जे बुझाइत अछि जाग्रत आ सक्रिय,
अस्तित्व रक्षाक हेतु
जाग्रत रहबा लेऽ विवश
औंघायल, थाकल भीड़ अछि।
वास्तवमे ई दिन नहि
साँझक मनोहारी ओत तरे आयल
राति अछि।
साँझ-सन्धिस्थल, दिन आ रातिकेँ।
ई प्रकाश नकली अछि
जे टीकल अछि स्वीचक
ऑन आ ऑफपर।
हमरा चाही नहि एहन प्रकाश
बन्हकी परल अछि स्वयं जकर भाग्य।
हमरा चाही सुरुज
जे अवतरित होइत अछि
रातिकेँ छाती चीरिकऽ
आ जकरा अवतरित होइते
अन्हार, भऽ जाइत अछि फरार
आ नुका रहैत अछि
एहन घरमे, गुफामे, आ कन्दरामे
जाहिमे होइत नहि अछि दरबज्जा।
आ नकली प्रकाश
किछुकेँ स्वीच ऑफ कऽ देल जाइत अछि
आ किछु जे रहि जाइत अछि बाँकी
दिनुका इजोरियामे
सुरुजक इजोरियामे
प्राणहीनवत् भऽ जाइत अछि।
हमरा चाही दिन
मुदा छै अखन राति
एकटा कृत्रिम प्रकाशसँ
सुसज्जित राति।
नजैरके भरमऽबैत एहि रातिकेँ
बूझल अछि परिणति हमरा।
हमरा बूझल अछि इहो
जे समयक श्रमिकसभ
कान्हपर नेने हर आ कोदारि
पहुँचि गेल अछि
समयक खेतमे,
खनत ओ श्रमिकसभ
खनैत रहत ताधरि,
भेटतै नहि जाधरि भोर,
रहैत अछि जतऽ सुरुज
जे चीरि देत छाती रातिकेँ
आ निकलतै दिन।
विजयी सुरुजकेँ ठिठियाइत देखि
सिनुरायल सन भऽ जेतै अकाश
पसरि जेतै मुक्त चिड़ैकेँ
चहचहाहट चहुँदिस
आ धरतीपर बहतै पसेना
ओकर पुत्रसभक सामर्थ्यकेँ,
आ उगतै जीवनक फूल
सभ उँच-नीचके बन्धन तोड़ैत।
- पुस्तक : समय गीत (पृष्ठ 25)
- रचनाकार : रोशन जनकपुरी
- प्रकाशन : मैथिली विकास कोष, जनकपुर
- संस्करण : 2013
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