नगड़ची की हत्या

nagadchi ki hatya

रमाशंकर सिंह

रमाशंकर सिंह

नगड़ची की हत्या

रमाशंकर सिंह

उसके पैदा होने पर

सप्तर्षियों ने की कोई बैठक

ही दिखा कोई तारा

उत्तर दिशा में

ही उस दिन नदी में

एकाएक आया ज़्यादा पानी।

उस दिन तो सूरज भी

थोड़ा कम लाल उगा

बिल्कुल भोर में चिड़ियाँ बोलीं

सुग्गे तो सुग्गे उस दिन कौए भी अलसाए थे

एक नामालूम-सी घड़ी में जन्मा वह

नगाड़ा बनाने वाले कारसाज़ के यहाँ।

पता था उसे सबसे अच्छा चमड़ा

किस पशु का है

उम्र, क़द-काठी सब पता थी उसे पशुओं की

किस जगह के चमड़े से बनता है जूता

कहाँ से निकलती है मशक

कहाँ के चमड़े से बनता है नगाड़ा।

कहाँ से निकलती है गगनभेदी आवाज़

किस चमड़े की बनती है ढोल

ढोल कसने का ताँत निकलता है कहाँ से

कहाँ के चमड़े से बनता है डमरू

जिससे निकलते हैं

पाणिनि के माहेश्वर सूत्र

व्याकरण के सिरजे जाने से पहले

ध्वनियों के प्रथम साक्षी थे उसके पुरखे।

देश के सारे गीतों के बोल

निर्धारित हैं उन वाद्य-यंत्रों से

बनाए थे उसके बाप-दादों ने

इस महाद्वीप की नर्तकियों का लास्य

ढोल के उन चमड़ों का ऋणी है

जो कमाया गया था सैकड़ों साल पहले।

तो हुआ एक दिन क्या

उसने बनाया नगाड़ा

आवाज़ गूँजती पाँच कोस जिसकी

और अगहन की एक सर्द-सी शाम

नगड़ची राजधानी चला आया।

राजधानी में देस के राजा का घर था

उसे लगा कि यही मुफ़ीद जगह है

विरुदावली गाई जाए उसकी

प्रजा के सुख बताए जाएँ

दिल्ली के बड़के अर्थशास्त्री को भी

देस का हाल बताया जाए

आख़िर वह था

देस की गाथाओं का आदिम संरक्षक

वंशक्रम, कीर्ति

सब था उसकी जिह्वा पर

हज़ारों-हज़ार वर्ष से उसके पुरखों ने

ऐसे ही सुरक्षित रखा था इतिहास

इतिहासकारों का वह पुरखा

राजधानी में गाने आया था

देस का इतिहास।

लेकिन यह क्या?

वह गाने लगा अपने पूर्वजों के सोग

सदियों के संताप नगाड़े पर बजाने लगा वह

बताने लगा कि गाँव में तालाब में

किसकी लाश उतराई थी

पिछले महीने

किसने लगाई छप्पर वाले टोले में आग

किसने क़ब्ज़ा कर लिया चारागाह

सब कुछ उसने सुनाया

बूढ़े पत्रकार को

पत्रकार केवल इतना बोला

तुम बोलते हो ऋषियों की तरह

राजधानी में भला उनका क्या काम

कल आना मेरे घर

पिलाऊँगा फ़्रांस की दारू।

तो नगड़ची को फ़ुर्सत थी

बूढ़े पत्रकार को

नगड़ची राजधानी नगाड़ा बजाने आया था

पत्रकार हर मिलने वाले से कहता था

घर आना

नगड़ची उसकी आँखों की ऊष्माहीनता से जान गया था

वह केवल उसे मन-बहलाव के लिए बुला रहा

उन्हीं दिनों माघ के महीने में

राजधानी के दिल और दिमाग़ पर कुहरा छाया था

उसने सेंका अपना नगाड़ा एक बार फिर

राजधानी में काठ नहीं बचा था

वह केवल लोगों के कलेजे में था

उसने टाइम मैगज़ीन को जला कर ही

नगाड़े के मर्म पर लगाई चोट

अब वह शहर के साहित्यकारों की करने लगा मुनादी

उनका गुण-रूप-रस

भाषा-रूपक-भाव

सब कुछ बताने लगा

नगाड़े की चोट पर

उनका संगीत और कला प्रेम

उसके लाभार्थियों की सूची

उसने बताई

पिछले सात पुश्तों की

फागुन की सनसनाती हवा

नगाड़े की आवाज़ ले जाने लगी

मुगल गार्डेन में घूमते लोगों तक

उसने पिछली सदी के कलेक्टर कवि के

औसतपने की खोल दी पोल

कि उसने चुराई हैं कविताएँ

अपने टाइपिस्ट की

यह बात उसने नगाड़े की दो टंकी लगाकर कही

मंडी हाउस मेट्रो पर

इंडिया इंटनेशनल सेंटर में जब व्याकरण के पंडित

एक नई भाषा खोजे जाने की कर रहे थे प्रेस कॉन्फ़्रेंस

तो उसने जोर से बजाया नगाड़ा

'यह तो मेरे पुरखों की भाषा है

चुरा रहा है यूनिवर्सिटी का प्रोफ़ेसर'

दिल्ली विश्वविद्यालय की आर्ट फ़ैकल्टी पर

एक बड़े से मजमे में उसने बताया कि बैंक का अफ़सर

विज्ञापन का कौर डालता है संपादक को

और उसे साल का बेहतरीन कवि घोषित कर देता है

एक चित्रकार

उसकी पत्रिका में

फिर होली के दिन

शहर के सारे कवि-संपादक-पत्रकार

प्रोफ़ेसर और नेता

आंदोलनकारी और मुक्तिदाता जमा हुए

राजा भी आया अपनी लाव-लश्कर के साथ

एक जज एक वकील भी आया

स्टेनो टाइपिस्ट आए

मुकर्रर की गई उसकी सज़ा

नगड़ची को झोंक दिया ज़िंदा

होली के दिन होली की आग में

वह जल ही रहा था अभी

उस पर कविता लिखी

एक घंटावादी कवि ने

ठीक तीन महीने बाद

उसे दिया गया बेहतरीन कवि का पुरस्कार

और राजधानी में काव्य-संस्कृति ऐसे ही पनपती रही।

स्रोत :
  • रचनाकार : रमाशंकर सिंह
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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