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अप्रैल

april

अनुवाद : राघु मिश्र

शक्ति महांति

अन्य

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और अधिकशक्ति महांति

    भीगा-भीगा-सा लग रहा यह रास्ता मरीचिका-सा

    दिखता, मानो जगह-जगह तुम ही खड़ी हो

    तुम्हारे पास घड़ी भर रुक जाना

    छाँव-सा, ठंडे पानी-सा

    संक्रमण नहीं है मेरे ख़ून में

    यह उस फॉर्मासिस्ट की कही हुई बात जैसा

    कोई कोई छटपटाने लगता

    जब कोई सूरज गिरता है

    दोपहर के कोलतार पर

    आओ मेरे स्कूटर के पीछे बैठो

    निगल जाए मेरी छाँव तुम्हारे सारे बदन को

    और यह अप्रैल की धूप, मेरे माथे को

    धूल उड़ाकर जो बस निकल गई

    कोई नाविक-सा हाथ हिला रहा

    कौन है वह? वह क्या जाने

    मुझे पहुँचना कहाँ है

    कुछ लोग कीर्तन कर रहे

    सड़क किनारे, मंदिर में

    पंगत है, प्याऊ लगा है

    उस तरफ़ बीयर पॉर्लर में

    यहाँ-वहाँ लगी हैं लाल-लाल कुर्सियाँ

    किसी के ऋतुस्राव की तरह

    मेरे माथे के ऊपर से गुज़रते

    गिरा एक हवाई जहाज़

    उसकी गाभिन मछली के पेट में

    बेशुमार सपनों के घाव लिए

    क्या तुम आई होगी, इसी में?

    रिक्शे में बुर्का ओढ़कर

    इस धूप में कौन है जो घूम रही

    तुम्हारी तरह चेहरा छुपाकर?

    सायरन बजाते दौड़ रही है एंबुलेंस

    मौत को क्या कोई ऐसे ही

    घसीट कर ले सकता है राजपथ पर?

    छोड़ो किसी का जीना-मरना

    मेरे लिए एक ही जैसा

    रंग-बिरंगे छाते लिए गुलमोहर या

    यूकेलिप्टस के पेड़ तले

    तुम हो सकती हो, कहीं भी

    एक बीयर है मेरी डिक्की में

    अप्रैल और भी बाक़ी है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सदानीरा
    • संपादक : अविनाश मिश्र
    • रचनाकार : शक्ति महांति
    • प्रकाशन : सदानीरा पत्रिका

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