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आह्वान की प्रतीक्षा...

ahvan ki prtiksha. . .

अलेक्सांद्र ब्लोक

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अलेक्सांद्र ब्लोक

आह्वान की प्रतीक्षा...

अलेक्सांद्र ब्लोक

और अधिकअलेक्सांद्र ब्लोक

     

    प्रतीक्षा किसी आह्वान की है, तलाश किसी उत्तर की है,
    लेकिन निश्शब्द है आकाश और पृथ्वी भी चुप।
    पीले लहलहाते खेतों के पीछे दूर कहीं
    आँखें खोल रहे हैं मेरी प्रार्थना के शब्द।

    दूर कहीं किसी वार्तालाप की अनुगूँज में से
    रात के आकाश से, ऊँघते खेतों में से
    आकर्षित कर रहे हैं हमें रहस्य
    क्षणिक और निष्कलुष भेंट के।

    नई धड़कनों ने अपने आलिंगन में ले लिया है मुझे।
    और अधिक चमक है आकाश में, ख़ामोश और गहरी चमक...
    रात के रहस्यों को नष्ट कर देंगे शब्द,
    ओ ईश्वर! दया कर रात की आत्माओं पर!

    एक क्षण के लिए खेतों के पीछे
    बहुत दूर की गूँज की तरह
    आज भी प्रतीक्षा है किसी आह्वान की,
    तलाश है किसी उत्तर की,
    लेकिन और अधिक गहरी
    होती जा रही है चुप्पी पृथ्वी की। 

         
    स्रोत :
    • पुस्तक : दूर की आवाज़ (पृष्ठ 33)
    • रचनाकार : अलेक्सांद्र ब्लोक
    • प्रकाशन : प्रकाशन संस्थान, नई दिल्ली
    • संस्करण : 2006

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