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अंतिम उपदेश

antim updesh

अजमेर रोडे

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अजमेर रोडे

अंतिम उपदेश

अजमेर रोडे

और अधिकअजमेर रोडे

    ऋषि पतंजलि ने

    आसपास जुड़े उदास चेहरों की ओर

    देखा और कहा...

    तुम्हारा तन, तुम्हारा मन है प्रिय

    मन के सम्मुख हो जाओ तो

    तन से विमुख मत होना

    मन की उदासी जानना चाहते हो तो

    पहले तन के सुख-दुख सुनो

    अंग-प्रत्यंग से संवाद करो

    एक-एक अंग को पहचानो और जानो

    अंगों का चलन समझो

    मन की जलन समझो

    मन की इच्छा पूरी करनी है तो पहले

    उसके हाड़-माँस के अंगों की इच्छा जानो

    तन को ताज़ा नज़र से देखो

    मोह के साथ छुओ

    तन बासी पड़ने लगता है

    तो दुख होता है

    इसलिए यह लो योगशास्त्र

    इसके पन्नों में से

    मैं हमेशा यूँ ही बोलता रहूँगा

    कहीं मेरे मरने के बाद तुम अपने

    तन से विमुख मत हो जाना

    बोलने की बात चली है तो

    यह जान लो कि तुम्हारा बोल

    तुम्हारा मन है

    बोल रुग्ण है तो तुम्हारा मन रोगी है

    कड़वा बोलोगे तो तुम्हारे मन में कड़वा रस

    घुल जाएगा

    अग्नि वाक्य बोलोगे तो मन आँच पर चलेगा

    तुम्हारे शब्द तुम्हारे मन की प्रतिछाया हैं

    प्रिय तुम्हारा मन तुम्हारा तन भी है

    ये लो, यहाँ लिख दिया मैंने शास्त्र में

    निर्मल वाणी बोलने का रहस्य।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 299)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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