अंतिम शरणगाह
antim sharangah
दुख की एक नदी थी
जिसमें हम दोनों को उतरना था
हम प्रेम करने लगे
सुख का एक आकाश था
जिसमें हम दोनों को उड़ना था
हम प्रेम करने लगे
अपने खारे आँसुओं से
हमने मीठे पानी की एक झील बनाई
और उम्र भर नहाते रहे
कोमल भरोसे से खड़ा किया
प्रेम का ऊँचा पहाड़
और शिखरों पर चढ़ इठलाते रहे
हमने उम्मीदों का
एक हरा-भरा जंगल लगाया
और भटकते रहे
बेपरवाह
बावजूद इसके
प्रेम को नहीं मिल पाई साबूत ठौर
कि हम आँख मूँद सुस्ता सकें
देह मिट जाने तक
हम सिर्फ़ सपनों में मिलते रहे
वहीं पूरी कीं सारी इच्छाएँ
हम प्रेम करते थे
सपने ही बने
हमारी अंतिम शरणगाह
- रचनाकार : कुंदन सिद्धार्थ
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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