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इन्का

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क्रेग रेन

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क्रेग रेन

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और अधिकक्रेग रेन

    रोचक तथ्य

    कुज़रो, पेरू में केंद्रित इन्का साम्राज्य पंद्रहवीं शती में अपने वैभव की ऊँचाई पर था, एक्वाडोर से उत्तरी चिली तक फैला हुआ। पहिए और लेखन विधि के अभाव में भी वह सभ्यता के ऊँचे शिखर तक पहुँची।

    इन्का अब यहाँ सिर्फ़ यह है,

    चूँकि अतीत बीत गया

    भविष्य एक गल्प है :

    दीवारों से घिरा है एक उद्यान

    जहाँ खड़ा हूँ मैं एक दूसरी ही ज़िंदगी में

    झींगुर की तरह सधी

    छत की कुर्सी चमकती है

    बोझिल चाँदनी में

    मकानों से आते प्रकाश से फीकी होती

    परछाईं को दर्ज करती है धूप कड़ी

    और हंस दिखाते हैं हमको

    अपनी टपटपाती चोंचें

    लेकिन तुम्हारे होंठ हैं खुले हुए

    चूमने या बोलने

    मैं कह नहीं सकता, इन्का

    अब यहाँ सिर्फ़ यह है :

    फक्कड़ है घास पर पानी छिड़कनेवाला

    एक शीशम का मेट्रोनोम

    जिसकी खो गई चाबी

    और नहीं मिलेगी कभी—

    इन्का, हम देखेंगे कबूतरों को

    अचानक मुड़कर

    श्यामल से श्वेत की ओर जाते

    सोने के उस कमरे के

    वेनिसी परदे की तरह

    वहाँ जहाँ बच्चा सोता है, इन्का

    मैं खोया हूँ विचारों में

    लिखने की कोशिश में

    पानी का पीपा करता है बाज़ीगरी

    बारिश की बूँदों से, इन्का

    तुम्हारी आँखें भर जाती हैं

    आँसुओं से जब तुम पढ़ती हो कोरा काग़ज़

    वह तुमसे क्या कह सकता है

    अब यहाँ सिर्फ़ यह है :

    एक दीर्घ अनलिखी कविता

    जो लगभग उत्सव मनाती है

    बेटी की चुकंदर-सी एड़ियों

    और पत्तों द्वारा छोड़े धब्बों जैसे

    फीके, अनिंद्य कंचुकों का

    इन्का, कैसे तिरती है उसकी रात की पोशाक

    लो वह गई, एक गंभीर चेहरा,

    उद्यान के हर कोने से,

    लिए अँजुरी में एक रहस्य

    जिसे वह चाहती है मैं देखूँ

    मानो उसने किसी तरह

    आविष्कृत कर लिया हो पहिया, इन्का

    स्रोत :
    • पुस्तक : पुनर्वसु (पृष्ठ 396)
    • संपादक : अशोक वाजपेयी
    • रचनाकार : क्रेग रेन
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1989

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