Font by Mehr Nastaliq Web

अँधेरे में डूबे हुए वृक्ष की शाखाओं को

andhere mein Dube hue wriksh ki shakhaon ko

शेषेन्द्र शर्मा

अन्य

अन्य

शेषेन्द्र शर्मा

अँधेरे में डूबे हुए वृक्ष की शाखाओं को

शेषेन्द्र शर्मा

और अधिकशेषेन्द्र शर्मा

    अँधेरे में डूबे हुए वृक्ष की शाखाओं को

    घेर लिया स्मृतियों-जैसे जुगनुओं के झुंड ने

    नींद खो कर गाँव

    सुन रहा था बैलों के जुओं से बँधी घंटियों को

    लगता है—पूलों के ढेरों के मौन पर

    गिरने ही वाले हैं नक्षत्र

    आँख और स्वप्न के बीच

    दूरी है एक रात की

    गाल फुला कर वृक्ष

    दो शाखाओं से एक पुष्प पकड़ कर

    बजा रहा था शहनाई

    एक राग फेंक कर बुलबुल

    उड़ा ले गया सारा का सारा बाग़

    अपने नन्हें-नन्हें पंखों पर

    गाँवों की इंद्रधनुष काव्यवस्तु नगरों की

    और वृक्ष की डाल

    एरोड्रम है कवि की नज़र में

    जहाँ उतरता है पक्षी उड़ान के बाद

    कैसी रात है यह कि जलाने के बाद

    रोशनी के बजाय, आह दे रहा है दीप

    शायद आज आकाश के ख़यालों में चंद्रमा

    एक बूँद है आँसू की

    रात एक नक्षत्र-मुर्गी है

    जो पूरब की दिशा पर रखती है एक सुनहरी अंडा

    सूरज सूअर है किरणों का

    जो रोज़ माणिक बन कर

    सोता है रात के होंठों पर

    प्रातःकाल स्नान करके एक कमल ने

    सुगंधित कर दिया समस्त ताल को

    अपनी स्मृतियों से

    और उससे मूर्च्छित होकर

    गिर कर पिघल गया चंद्रमा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द इस शताब्दी का (पृष्ठ 37)
    • रचनाकार : कवि के साथ भीम सेन 'निर्मल', ओम प्रकाश निर्मल
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
    • संस्करण : 1991

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY