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आलाप

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लवली गोस्वामी

अन्य

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वांछित का अभाव सारांश होता है स्मृतियों की किताब का

तमाम स्मृतियाँ 'विदा' के एक अकेले शब्द की वसीयत होती हैं

हँसती आँखों के सूनेपन में

क़ैद हो गए वे यतीम दृश्य

जो घट सके मेरे तुम्हारे बीच

कविता की शक्ल ले ली

उन बातों ने जो कही जा सकीं

जिन हतभागी चित्रों में ढूँढ़ा तुम्हें

वे समय के फ्रेम में सके

जो आईने तुम्हारी शक्ल गढ़ते थे

उनकी आँखें किसी अनंत देहधारी रात ने

अपनी हथेलियों से ढँक दी

फ़ैसले कितने भी सही हों,

दुःख नहीं सुनता किसी की

मरे प्रेम की क़ब्र पर बैठ लगातार रोता है

घाव चाटते चोटिल सियार की तरह

मेरी आँखों का पानी तुम्हारी छाती से

ज़मीं की तरफ़ बहकर

तुम्हारी देह पर पानी की पतली लकीरें बनाता है

सद्य:जात शिशु के होंठों से निकलती

मेरी काँपती रुलाई में तुम

सीधे खड़े हरे देवदार के पेड़ की तरह भीगते हो

तुम्हारी आत्मा इस झिलमिलाते पानी की क़ैद में है

मेरी आँखों का यह पानी तुम्हारे मन का लिबास है

तुमसे मेरी नींदों के रिश्ते की कोई पूछे

तुमने उनकी इतनी फ़िक्र की

कि मेरी नींदों की शक्ल तुम-सी हो गई

जो रातें मैंने जागकर बिताई उनमें

मैं तुम्हारा होना जीती रही

रास्ते मनुष्य के छोटेपन से खेलते हैं

प्रेम मन के गीलेपन से

ठहरे पानी में पेट्रोल की

बहुरंगी पन्नी जमती है

जवानी में विधवा हुई औरत के चेहरे पर

अठखेलियाँ करती एषणाएँ जमती है

देर रात में शहर के चेहरे पर थक कर

रंग-बिरंगी रौशनियाँ स्थिर जमी हैं

मेरी आँखों में स्थिर है

अंतिम दफ़ा देखा हुआ तुम्हारा मुस्कुराता चेहरा

जीवन एक लंबे जटिल वाक्य की तरह था

जिसमें प्रेम की संज्ञा बनकर तुम बार-बार आए

रहा तुमसे मेरा प्रेम एक ऐसी अनगढ़ कथा का ड्राफ्ट

जिसे लौट कर बार-बार लिखना पड़ा

सिर्फ़ तुम्हारी बदौलत आज मैं शान से कह सकती हूँ

कि अधूरापन मेरा गोत्र है

कई चीज़ें थीं जिन्होंने मेरे ज़ेहन में छपी

तुम्हारी आवाज़ की जगह लेनी चाही

एक दिन समुद्र मचलता उठा

अपनी गड़गड़ाहटों में गूँथ कर उसने मेरा नाम

बिल्कुल तुम्हारी तरह पुकारा

एक दिन हवा घने पेड़ों से होकर गुज़री

हवा में घुली हरी गंध के पास

तुम्हारे शब्दों जैसी फुसफुसाहटें थी

एक रोज़ बारिश हुई

पत्तों पर गिरती बूँदे

मेरे लिए तुम्हारी तरह गाती रहीं

एक दिन झरना घने जंगल के बीच

अपनी ऊँचाइयों से धरती पर गिरा

तुम्हारी ही तरह मेरे लिए वह

अविकल कविता पढ़ता रहा

एक दिन हवा ने फैला दी अपनी बाँहें तुम्हारी तरह

मैं घंटे भर तक उसकी सरसराहट में थमी रही

तुम्हारा अनुपस्थित होना लेकिन फिर भी

तुम्हारा अनुपस्थित होना था

कोई भी तुम्हारे होने का भ्रम रच पाया

उदासी मेरी मातृभाषा है

हँसी की भाषा मैंने तमाम विदेशी भाषाओं की तरह

ज़िंदगी चलाने के लिए सीखी है

तेज़ हवा में हथेलियाँ हटा दो

तो दीपक बुझ जाता है

दोष हवा को नहीं लगता

पौधे को पानी दो

वह सूख जाता है

दोष धूप का नहीं होता

लता आलंबन के बिना

धूल में मिल जाती है

दोष ऊँचाइयों का नहीं होता

मरुस्थल में कोई

बिना पानी मर जाए

मरीचिका दोषी नहीं होती

जंगल में दावानल फैल जाए

तो अभियोग बारिश पर नहीं लगता

अपराध और दंड की परिभाषा दुनिया में

ईश्वर के अस्तित्व के सवाल की तरह

बहुआयामी है

आँसू आखों में नहीं दिल में बनते हैं

मुझे बताओ, कैसा लगता होगा उन संदेशों को

शिलालेखों में जिनकी लिपियाँ अबूझ रहीं

जिनके अंत लिखे जा सके

उन उपन्यासों की पंक्तियाँ कहाँ रह गई होंगी

उन फ़सलों के नृत्य कहाँ जाते होंगे

जिन्हें पाले रौंद जाते हैं

तुम यह मत समझना

कि मुझे सुनाई नहीं दिए वे शब्द

जो तुम्हारे मन से ज्वार की तरह उमड़े

लेकिन तुम्हारे पथरीले किनारों से टकरा कर

तुम्हारे अंदर ही बिखर गए

कभी-कभी हम जिसे खोना नहीं चाहते

उसे खोने से इतना डरने लगते हैं

कि एक दिन अच्छी तरह उसे खोकर

इस डर से हमेशा के लिए मुक्त हो जाते हैं

बातें सफ़ेद हैं, सन्नाटा स्याह है

और फुसफुसाहटें यक़ीनन चितकबरी है

उन मोड़ों को मैं कभी कुछ कह सकी जिन्होंने

मेरे चाहने पर भी मुझे तुमसे बार-बार मिलाया

यही जान सकी कभी क्यों तुम्हारा होना

अचानक चटकीली सुबह से दमघोंटू धुँध में बदल गया

जब-जब मिटाने की कोशिश की

प्रेम को आत्मा का एक हिस्सा मिट गया

जब भी कोई साथ की सीट से उठा

सुकून का थोड़ा सामान लेकर उतर गया

कभी पूछ सकी यह सवाल क्या

किसी का मन तोड़ देना भी कोई अपराध है?

किसी के मन में स्मृतियों के भव्य नगर बसा कर

उन्हें सुनसान छोड़ देना भी कोई अपराध है?

अब जब पुकारों से परे है तुम्हारा नाम

यह डर भी नहीं है कि एक दिन लौटेगा प्रेम

उसके साथ टूटने के दिन भी लौटेंगे

मैं जानती हूँ इतनी बात

कि पहला प्रेम धीरे-धीरे अपनी मौत मरता है

उसके बाद आए प्रेमों का गला

पिछले प्रेमों के वाचाल असंतुष्ट प्रेत घोंटते हैं

मन के घाव पर जमी कठोर पपड़ी से

टूट जाने की मनुहार करता प्रेम चाहता है

आत्मा की त्वचा चोट भूलकर एकसार हो जाए

शहर की सड़क पर बेवजह देर रात चलती हूँ

शोर और धुएँ से छुट्टी पाकर सड़कें

बुरी तरह खाँस कर धीमी-धीमी साँसे ले रहे

बूढ़े की तरह शांत है

शहर की कुछ पुरानी इमारतें अब ढह रही हैं

वास्तुविद् कहते हैं, इतनी पुरानी इमारतों की

अब मरम्मत नहीं हो सकती

जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है

चोटें अधिक आसानी से लगती है

उनके घाव देर से भरते हैं

और एक बात तय होती है शत-प्रतिशत

उनके निशान कभी नहीं मिटेंगे।

उपजाऊ होते हैं दुःख

और सुख अधिकतर बाँझ

कहाँ रोक पाता है अनंत विस्तार का स्वामी आकाश

पानी की मामूली बूँदों से बने सतरंगी इंद्रधनुष को

अपनी एकरंगी काया रँगने से

पथरीले टीले पर उगी दूब का जीवन अल्प होता है

लेकिन वह कवियों और चित्रकारों को

उनकी कला की प्रेरणा दे जाती है

अधरस्ते छूटे प्रेम की क्षणिकता भी कोई अपराध नहीं है

और संयोग से यह जीवन के लिए निरर्थक भी नहीं है।

स्रोत :
  • रचनाकार : लवली गोस्वामी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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