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अकेला होना

akela hona

रविंद्र स्वप्निल प्रजापति

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और अधिकरविंद्र स्वप्निल प्रजापति

    अकेलापन एक रूमाल है

    जो मेरे हाथों से गिरकर अधखुले दरवाज़े पर पड़ा है

    यादों के फ़र्श पर उसकी सलवटें धूल जैसी बन गईं

    अकेलापन कमरे में भरी हवा में धुला है

    मैं आकर अपने फ्लैट पर साँस लेता हूँ

    तुम अकेले होने को सहेजती हो कहीं और

    काला और सफ़ेद मौसम बादलों की तरह

    पूरे शहर पर छा जाता है

    तालाब में चमकती लाइटों की तरह बने

    हमारे कंट्रास को दुनिया देखती है

    तुम प्यार करके कोई पागल लड़की नहीं बनीं

    जैसा यह दुनिया सोचती और कहीं कहती भी है

    अकेलेपन के पहिए में तुम अपनी धुरी पर घूमती पृथ्वी हो

    मैं भी घूम रहा हूँ तुम्हारे साथ पूरा सामान लिए

    दर्शकों को पता नहीं चल रहा कि हमारा घूमना सापेक्ष है

    लगातार चलते हुए अकेला होते चला जाना

    अकेला होना सिर्फ़ अकेला होना नहीं होता

    अकेलापन एक हवा जैसा कोई आकर है जिसमें

    एक साँस तुम लेती हो और एक साँस मैं लेता हूँ।

    स्रोत :
    • रचनाकार : रविंद्र स्वप्निल प्रजापति
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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