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आकाश

akash

राधावल्लभ त्रिपाठी

अन्य

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और अधिकराधावल्लभ त्रिपाठी

    क्या करे यह आकाश?

    हवा की तरह वह बह नहीं सकता

    आग की तरह जला नहीं सकता

    पानी की तरह धाराओं में नहीं बँट पाता

    धरती की तरह नहीं उठा सकता बोझ

    हवा में स्पर्श है

    आग में रूप है

    पानी में है रस

    धरती में रमी है गंध

    पर आकाश में है ही क्या?

    उसका तो होना, कुछ होने में ही

    वह भी ललचता है स्पर्श के लिए

    वह भी चाहता है रूप

    उसे भी गर्मी चाहिए

    वह भी माँगता है रस

    गंध का लोभ उसमें

    वह घट-घट में घुसता है

    मठ-मठ में करता है प्रवेश

    पर नहीं मिलती उसे अलग पहचान

    कहते हैं पंडितजन

    घटाकाश हो या मठाकाश

    आकाश तो है केवल आकाश

    गगनचुंबी इमारतों के जंगल में

    वह भटकता है बदहवास

    उसे सब ओर से पीस रही हैं इमारतों की घनी पाँतें

    डराता है उसे धुआँ

    पाइपों से फूटता

    आकाश ढूँढ़ता फिरता है अपना ख़ुद का आकाश

    आकाश के लिए

    कहीं नहीं है अवकाश

    क्या करे बिचारा आकाश?

    स्रोत :
    • रचनाकार : राधावल्लभ त्रिपाठी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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