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ऐसे मत मिलना

aise mat milna

पाल कौर

अन्य

अन्य

पाल कौर

ऐसे मत मिलना

पाल कौर

मत मिलना मुझे तुम

फूल में सुगंध-सा

उड़ा ले जाएँगी हवाएँ

सुगंध-सुवास धीरे-धीरे

मत बनना अर्धनिद्रा में मेरा स्वप्न

जो बैठा रहे संपूर्ण मेरी यादों में

बनना गहरी नींद का ख़्वाब

जो फिसल जाए सुबह, स्मृति में से थोड़ा-थोड़ा

और टिका सकें पाँव हम

स्वप्न और सुबह के बीच

मिलना भले मुझे तुम तमाम दीवारें गिराकर

लेकिन होगी तुम्हारी ही फ़ौज ऊपर मेरी

होंगे पिंजरे तुम्हारे और मेरे भी

रख लेंगे थोड़ी कच्ची जगह

नो मैन्स लैंड

साँस लेने को

लड़ने के लिए

रोने

और जीने के लिए भी

आऊँगी बार-बार तुम्हारे पास

शब्दों की अँगुली थामकर

लेकिन शब्द और सत्य में

होगा कुछ फ़ासला

रखना उसी फ़ासले पर पाँव

और मुझे मिलना

रखना मेरे कंधे पर सिर

बह जाने देना

कोई अहसास आँखों में से

लेकिन बचा रखना एक-दो आँसू

अपने वास्ते

अगली यात्रा के लिए

मत मानना घर

अपने आसपास बुने जाले को

पाँव रखो मेरी दहलीज़ पर तो

दिमाग़ में आसमान रखना

ऐसे मत मिलना

कि रह जाए फूल

छुआ, अनछुओं-सा अस्तित्वहीन।

स्रोत :
  • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 561)
  • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
  • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2014

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