Font by Mehr Nastaliq Web

ऐसे ही लिखा है अंत

aise hi likha hai ant

योगेश कुमार ध्यानी

अन्य

अन्य

योगेश कुमार ध्यानी

ऐसे ही लिखा है अंत

योगेश कुमार ध्यानी

और अधिकयोगेश कुमार ध्यानी

    ऐसे ही लिखा है अंत

    घिरते अंधकार मे

    किसी चातक की नुकीली चोंच से

    अंतिम शब्द उचार पाने की खीझ के बीच

    उनका आभार प्रकट कर पाने के रोष के साथ

    जो मृत्यु के बाद प्रकट करेंगे शोक

    रखेंगे मौन

    जबकि मैं यह बोलने के लिए फड़फड़ा रहा हूँगा

    कि मैं उनसे सहानुभूति रखता हूँ

    चाय की प्यालियाँ जो बाँटी जा रही होंगी

    शोक सभा मे आगंतुकों के बीच

    उठाने के प्रयास मे मेरे हाथ से फिसल जाएँगी

    और मैं चाय की तलब मे भटक रहा हूँगा

    रेल जहाँ रुक जाती है अंततः

    पटरी के बीचों-बीच बड़े से क्रॉस को देखकर

    मैं उतरकर उस क्रॉस के पार चला जाऊँगा

    दैवीय हो जाऊँगा

    लेकिन मेरे दुख

    चाय की तलब लगने पर चाय मिलने

    पसंद की पुस्तक पढ़ पाने

    और तुमसे मन की बात कह पाने जितने आम होंगे

    मुझे दैवीय नहीं होना

    मृत्यु के बाद भी मैं याद किया जाना चाहूँगा ऐसे ही

    कि एक आदमी था जो क़लम रखता था जेब मे

    कुर्ते पहनता था देखा-देखी

    कतराता था बोलने से

    अपने लिखे को कविता जैसा समझता था कुछ

    पर बेचारा कवि नहीं हो सका ताउम्र...।

    स्रोत :
    • रचनाकार : योगेश कुमार ध्यानी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए