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आईना

aina

सावित्री राजीवन

अन्य

अन्य

और अधिकसावित्री राजीवन

    रोज़ मैं देखती हूँ आईना

    मेरी छोटी-छोटी आँखें

    कुछ नया नहीं कहतीं

    वे ही छोटी-छोटी आँखें

    वे ही रूखे बाल

    वे ही होंठ

    वे ही दाँत

    उसके चेहरे में नहीं है

    कुछ भी नफ़रत करने जैसा

    ध्यानस्थ मुनि की शांति

    दयालु की करुणा की आभा

    सावित्री का दृढ़ निश्चय

    यह सब

    मेरे लिए बहुत जाना-पहचाना है

    हवा की तरह हिलती

    प्रेम की कौंध

    वात्सल्य की मिठास

    दूध की तरह बहती

    जड़ों से उखड़े झंझावात की तरह

    बिखरे विचार

    ये सब

    इसके स्वरूप हैं

    मैं रोज़ आईना देखती हूँ

    वे ही छोटी-छोटी आँखें

    वे ही रूखे बाल

    वे ही होंठ, जो भौंकते नहीं

    वे ही दाँत, जो काटते नहीं

    वे ही ज़ंजीरें...

    उसके चेहरे में नहीं है

    कुछ भी नफ़रत करने जैसा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द सेतु (दस भारतीय कवि) (पृष्ठ 105)
    • संपादक : गिरधर राठी
    • रचनाकार : कवयित्री के साथ अनुवादक के. सच्चिदानंदन, राजेंद्र धोड़पकर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 1994

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