अहर्निश

aharnish

अहर्निश सागर

अहर्निश सागर

अहर्निश

अहर्निश सागर

रविवार की सुबह

एक बच्चा प्रवेश करता है चर्च में

प्रार्थना के बीच टोकता है पादरी को—

‘तू भटक गया है पादरी,

चल मेरे साथ चल...

मैं तेरा घर जानता हूँ’

पादरी, प्रार्थना के उपरांत

बच्चे को उसके घर छोड़ आता है

किसान ज़मीन पर घुटने टेक

प्रार्थना करता है

बारिश के देवता से

सुदूर आकाश में उड़ते गिद्ध

प्रार्थना करते है अनावृष्टि की

विरोधी प्रार्थनाएँ टकराती हैं आकाश में

असमंजस में पड़ा बारिश का देवता

निर्णय के लिए एक सिक्का उछालता है

पहाड़ की नोक पर

उग आए सूरज को देखकर

बच्चा प्रार्थना करता है—

काश, ये सूरज गेंद की तरह टप्पे खाता

उसके पैरों में आकर गिर जाए

बच्चों की प्रार्थनाओं से घबराया हुआ ईश्वर

अपने नवजात पुत्र का सिर काट देता है

हम अपनी प्रार्थनाओं में

लंबी उम्र की कामना करते हैं

कामना करते हैं सौष्ठव शरीर

और अच्छे स्वास्थ्य की

लेकिन उस युद्धग्रस्त देश में

जब प्रार्थना के लिए हाथ उठते हैं

वे कामना करते हैं—

हमारे सीने को इतना चौड़ा करना

कि कारतूस उसे भेद हमारे बच्चों तक पहुँचे

हमें घर की सीढ़ियों से उतरते हुए गिरा देना

ताकि औरतों को लाशों के ढेर में हमें खोजना पड़े

हे ईश्वर,

जब युद्ध प्रार्थनाओं को भी विकृत कर दे

तू योद्धाओं से उनकी वीरता छीन लेना

बुद्ध ने अपने अंतिम व्याख्यान में

प्रार्थनाओं को निषेध कर दिया

कहीं कोई ईश्वर नहीं,

तुम्हारी प्रार्थनाएँ मनाकाश में

विचरती हैं निशाचरों की तरह

और तुम्हारा ही भक्षण करती हैं

भिक्षुक प्रार्थनाओं से मुक्ति के लिए

प्रार्थना करते हैं

और भविष्य के लिए मठों में

काठ के छल्ले लगाते हैं।

स्रोत :
  • रचनाकार : अहर्निश सागर
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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