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अधिक-अधिक और अधिक माँगती हूँ

adhik adhik aur adhik mangti hoon

सुधा उपाध्याय

अन्य

अन्य

सुधा उपाध्याय

अधिक-अधिक और अधिक माँगती हूँ

सुधा उपाध्याय

और अधिकसुधा उपाध्याय

    मैं तो इसी जन्म को मानती हूँ,

    और एक सिर्फ़ तुम्हे जानती हूँ

    इसीलिए तुमसे अधिक-अधिक और अधिक माँगती हूँ

    तुम इतना प्रेम दे दो की लुटा सकूँ रोम-रोम से

    हर पल हर साँस सभी ख़ाली मन, बर्तन भर दूँ उसी विश्वास से

    तड़पकर देना भी कोई देना है

    इतना दे दो की अघाने से भी और बहुत-बहुत सारा बच जाए

    चोर भी चुरा ले जाए भिखारी का पेट भर जाए

    पड़ोसियों की जलन मिट जाए बीमार को भी आराम आजाए

    अगर इतना प्रेम देने से हिचकिचाए मन

    तो भी ये मुँह से कहना

    न-न ना कहना

    झूठ-मूँठ ही सही आज तो लबालब भर देना

    पाने वाला झूठ सच से परे होता है

    इसलिए तुमसे अधिक-अधिक और अधिक माँगती हूँ...

    स्रोत :
    • रचनाकार : सुधा उपाध्याय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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