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अचार का बवाम

achar ka bavam

शिवांगी सौम्या

अन्य

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शिवांगी सौम्या

अचार का बवाम

शिवांगी सौम्या

और अधिकशिवांगी सौम्या

     

    एक

    आज मेरी दोस्त के टिफ़िन से निकला अचार  
    जो गया सबके मुँह से पेट में  
    और निकला—वाह!  
    मैंने भी खाया लेकिन  
    निकले मेरी आँख से आँसू।  

    दो

    यादें कई तरीक़े की होती हैं  
    या कह लो  
    कई चीज़ों से 
    कई यादें जुड़ी होती हैं।  

    मसल मेमोरी होती है जैसे  
    जिससे याद रहता है साइकिल चलाना  
    बाइक चलाना—  
    जो आप कभी नहीं भूलते।  
    वैसे ही होती हैं  
    सुगंधों की यादें—  
    एक ख़ास ख़ुशबू  
    किसी ख़ास इंसान की याद दिलाती है।  

    वैसे ही स्वाद भी यादें होते हैं  
    जिन्हें जीभ की स्वाद-कलिकाएँ इकट्ठा करती हैं।  

    पता नहीं क्यों,  
    माँ ने ऐसी कई यादें छोड़ रखी हैं।  

    तीन

    मेरी माँ की यादें—  
    मेरा अचार का डब्बा।  

    जब भी याद आती 
    एक निकालकर खा जाती।  

    जब बहुत याद आती 
    दो-तीन-चार-पाँच... 
    बिंज ईटिंग चलती।  

    फिर एक दिन अचार का बवाम 
    आधा ख़ाली दिखा  
    फिर आँखों से इतने आँसू निकले  
    कि पूरा बवाम भर जाता 
    लेकिन बवाम रहा आधा ख़ाली।  

    माँ की यादें—  
    आधा ख़ाली...  

    चार

    गर्मियाँ आ गईं 
    सबकी छत पर रखी हुई  
    कटी हुई कैरियाँ,  
    कटहल,  
    और मिर्च—  
    न जाने क्या-क्या।  

    जब आप थीं  
    तब नहीं देखा आपको काटते इन्हें।  

    बहुत काम हुआ करता था  
    आप काटते थे 
    मैं बग़ल में पढ़ती रहती थी।  

    कल किताब समेट कर  
    अनुराधा आंटी को देखा कैरियाँ काटते  
    छोटी के छोटे-छोटे टुकड़े  
    और अंकल के लिए बड़े वाले 
    आज अचार के मसाले भूनने की ख़ुशबू आई  
    फिर मिक्सर ग्राइंडर की आवाज़  
    मैं याद नहीं कर पाई  
    आप कैसे भूनते वो मसाले  
    चौखट वाले चूल्हे पर या गैस पर?  
    कैसे कूटते थे उन्हें 
    मिक्सर में या सिलबट्टे पर?  
    तो मैं कल्पना करने लगी आपको—  
    नीली कॉटन की साड़ी  
    जिसके पल्लू को 
    आपने कमर पर बाँध रखा है  
    आप निकाल रही हो मसाले  
    नाप रही हो धनिया, सौंफ़, जीरा  
    और तोल रही हो आँख से  
    देख के अंदाज़ा लगा लेती कढाई के ताप का  
    सुगंध से ही समझ जाती  
    कि मसाले तैयार हैं।  

    पाँच

    अब डेढ़ साल हो गए!  
    अचार का बवाम ख़ाली होने को है
    कुल मिलाकर कुछ दस अचार बचे हैं  
    अब जब आपकी याद आती है  
    तो उनके क़तरे खा लेती हूँ  
    निकाल लेती हूँ कभी मसाले।   

    अचार कुछ दिन में ख़त्म हो जाएगा  
    फिर यादों का क्या होगा?  
    क्या वे होंगी  
    बिना बादल वाले आकाश की तरह 
    जहाँ होगा बस चमकता हुआ सूरज? 
    सूख जाएगा स्वाद  
    वो अचार भी  
    और रह जाएगी बस  
    उसके यहाँ कभी होने की याद।  

    छह

    इस साल मैं कैरियाँ लाई  
    और लगाया अचार  
    डाल दिया आपके बवाम का बचा तीन अचार
    ताकि आपका रचा स्वाद बना रहे
    आपकी यादें बनी रहें।   

    ये तो आपके अचार जैसे नहीं हैं माँ?  
    आपके बनाए वो तीन अचार भी नहीं मिल रहे!  

    स्वाद अब धुँधला-सा हो गया है,  
    बहुत धुँधला!  
    आपकी यादों की तरह—  
    जिनमें आप हो तो  
    मगर आपका चेहरा नहीं।  

    मेरी यादों की इस ख़ाली जगह को  
    तो मैं आपकी तस्वीर देख भर देती हूँ।  

    लेकिन आपके हाथों का स्वाद 
    जो उस अचार में बचा था  
    वो धुँधला हो गया।  
    वो खो ही गया।  
    उसे कैसे भरूँ?

      
    स्रोत :
    • रचनाकार : शिवांगी सौम्या
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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