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आज का मैतै साहित्य

aaj ka maitai sahity

लमाबम कमल सिंह

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लमाबम कमल सिंह

आज का मैतै साहित्य

लमाबम कमल सिंह

खिली तमिल प्रफुल्ल तेलुगु

भारत के पुष्पोद्यान में

दूर समुद्र तट से।

लाँघ उच्च हिम-श्रेणियाँ,

पहुँची नेपाली भारत की वाटिका में

कल की खासी भी मुकुलित भारत के प्रांतर में।

मुर्झाया क्यों तुम्हारा चेहरा माँ सखियों मध्य?

फूटते क्यों नहीं नव किसलय?

मुकुलित क्यों नहीं होते नव-पुष्प?

फैलाती क्यों नहीं शाखा-प्रशाखाएँ?

अभाव में भरपूर सिंचन के,

विचार लिया मन में—अच्छा है सूख जाना?

जान गया माँ, तुम ही निर्धन पुष्प,

भारत की इस वाटिका में।

देखो माँ अपनी अबोध संतानों को

चढ़ा जल तुम्हारे चरणों पर,

जुटी हैं पोखर खोदने मरुभूमि में!

करतीं पीछा माया-मरीचिका का, पकड़ने उसे!

स्रोत :
  • पुस्तक : कमल : संपूर्ण रचनाएँ (पृष्ठ 83)
  • संपादक : देवराज
  • रचनाकार : कमल
  • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
  • संस्करण : 2006

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