Font by Mehr Nastaliq Web

आज का दिन

aaj ka din

महेश आलोक

अन्य

अन्य

महेश आलोक

आज का दिन

महेश आलोक

और अधिकमहेश आलोक

    आज का दिन मैं अपनी तरह गुज़ारूँगा

    कुमार गंधर्व का बीस वर्ष पुराना कैसेट सुनूँगा

    इस तरह कि बीस वर्ष पहले गाया भजन मुझे

    आठ वर्ष की आयु में सुना हुआ लगे

    अगर यह तरीक़ा सफल हुआ तो मज़ा ही कुछ दूसरा होगा

    अपने जन्म से पूर्व स्वर्गवासी हुए गायकों को सुनने का

    अगर नहीं आई घर से चिट्ठी तो उदास नहीं होऊँगा

    किसी पुरानी चिट्ठी में नई तारीख़ डालूँगा

    और नई चिट्ठी की तरह पढ़ूँगा

    हालाँकि कोई नियम नहीं है हँसने का ऐसे समय फिर भी

    ठठाकर हँसूँगा

    इतना लगभग बित्ता भर अवकाश कहाँ मिलता है कि

    हँसा जा सके ख़ुद पर

    अख़बार में छपे शब्दों से कहूँगा कि अगर रख सकें तो रख लें

    दो मिनट का मौन अपने चरित्र पर

    कि वे किसी भी क्षण घोषित किए जा सकते हैं सांप्रदायिक

    उन्हे यह कहने की छूट हरगिज़ नहीं दूँगा कि कवि

    अपनी नागरिकता का शुल्क

    नहीं अदा कर रहे हैं

    लगभग इसी क्रम में किसी भी गर्म पेय को

    मसलन चाय को ही यह सलाह देना ग़लत नहीं समझूँगा

    कि अगर पी सके तो पी ले मेरी गरमाई को

    और तुलनात्मक अध्ययन करे अपनी गरमाहट से

    जो कृत्रिम है

    घड़ी देखने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता

    सिर्फ़ घड़ी को पता है मृत्यु का अंतिम सच और समय

    फिर नेत्र-व्यायाम की किस किताब में लिखा है

    कि घड़ी देखने से आँख की ज्योति बढ़ती है

    सच मानिए मैं दैनिक चर्या की धज्जियाँ उड़ाऊँगा

    आज का दिन मैं अपनी तरह गुज़ारूँगा

    आख़िर मैं भी आदमी हूँ

    स्रोत :
    • रचनाकार : महेश आलोक
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए