Font by Mehr Nastaliq Web

1903 के दिन

1903 ke din

अनुवाद : पीयूष दईया

सी. पी. कवाफ़ी

अन्य

अन्य

सी. पी. कवाफ़ी

1903 के दिन

सी. पी. कवाफ़ी

और अधिकसी. पी. कवाफ़ी

    फिर उन्हें मैंने कभी नहीं पाया—खो गया सब इतनी जल्दी....

    शायराना आँखें, श्लथ

    चेहरा... गली की गोधूलि में...

    फिर उन्हें मैंने कभी नहीं पाया—

    चीज़ें जो इत्तफ़ाकन मिल गईं थीं सचमुच

    जिन्हें छोड़ दिया इतनी सरलता से,

    और जिन्हें फिर मैंने चाहा तलब-तड़प में।

    शायराना आँखें, श्लथ चेहरा,

    वे होंठ—फिर मैंने नहीं पाए कभी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्यास से मरती एक नदी (पृष्ठ 95)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : सी. पी. कवाफ़ी
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए