15 अगस्त 1947

15 august 1947

सुमित्रानंदन पंत

चिर प्रणम्य यह पुण्य अहन्, जय गाओ सुरगण,

आज अवतरित हुई चेतना भू पर नूतन!

नव भारत, फिर चीर युगों का तमस आवरण,

तरुण अरुण सा उदित हुआ परिदीप्त कर भुवन!

सभ्य हुआ अब विश्व, सभ्य धरणी का जीवन,

आज खुले भारत के सँग भू के जड़ बंधन!

शांत हुआ अब युग-युग का भौतिक संघर्षण

मुक्त चेतना भारत की यह करती घोषण!

आम्र मौर लाओ हे, कदली स्तंभ बनाओ,

ज्योतित गंगा जल भर मंगल कलश सजाओ!

नव अशोक पल्लव के बंदनवार बँधाओ,

जय भारत गाओ, स्वतंत्र जय भारत गाओ!

उन्नत लगता चंद्र कला स्मित आज हिमाचल,

चिर समाधि से जाग उठे हों शंभु तपोज्वल!

लहर-लहर पर इंद्रधनुष ध्वज फहरा चंचल,

जय निनाद करता, उठ सागर, सुख से विह्वल!

धन्य आज का मुक्ति दिवस, गाओ जन-मंगल,

भारत लक्ष्मी से शोभित फिर भारत शतदल!

तुमुल जयध्वनि करो, महात्मा गाँधी की जय,

नव भारत के सुज्ञ सारथी वह निःसंशय!

राष्ट्र नायकों का हे पुनः करो अभिवादन,

जीर्ण जाति में भरा जिन्होंने नूतन जीवन!

स्वर्ण शस्य बाँधो भू वेणी में युवती जन,

बनो बज्र प्राचीर राष्ट्र की, मुक्त युवकगण!

लोह संगठित बने लोक भारत का जीवन,

हों शिक्षित संपन्न क्षुधातुर नग्न भग्न जन!

मुक्ति नहीं पलती दृग जल से हो अभिसिंचित,

संयम तप के रक्त स्वेद से होती पोषित!

मुक्ति माँगती कर्म वचन मन प्राण समर्पण,

वृद्ध राष्ट्र को वीर युवकगण दो निज यौवन!

नव स्वतंत्र भारत को जग हित ज्योति जागरण,

नव प्रभात में स्वर्ण स्नात हो भू का प्रांगण!

नव जीवन का वैभव जाग्रत हो जनगण में,

आत्मा का ऐश्वर्य अवतरित मानव मन में!

रक्त सिक्त धरणी का हो दुःस्वप्न समापन,

शांति प्रीति सुख का भू स्वर्ग उठे सुर मोहन!

भारत का दासत्व दासता थी भू-मन की;

विकसित आज हुईं सीमाएँ जग जीवन की!

धन्य आज का स्वर्ण दिवस, नव लोक जागरण,

नव संस्कृति आलोक करे जन भारत वितरण!

नव जीवन की ज्वाला से दीपित हों दिशि क्षण

नव मानवता में मुकुलित धरती का जीवन!

स्रोत :
  • पुस्तक : स्वतंत्रता पुकारती (पृष्ठ 259)
  • संपादक : नंद किशोर नवल
  • रचनाकार : सुमित्रानंदन पंत
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2006

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