कृष्णधर्म जातक

krishndharm jatak

अज्ञात

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कृष्णधर्म जातक

अज्ञात

वाराणसी के राजा ब्रह्मदत्त के समय में पहले वैश्रवण की मृत्यु1वैश्रवण कुबेर का दूसरा नाम है। बौद्धों के मत से देवता भी मरणशील होते है और उनके मरने पर दूसरा व्यक्ति उनके नाम से उनके स्थान पर बैठता है। हो गई और शुक्र ने एक दूसरे देवता को उनके राज्य का भार प्रदान किया। नए वैश्रवण ने राजपद ग्रहण करके तरु, लता, गुल्म आदि के देवताओं को आज्ञा दी कि तुम लोग जहाँ चाहो, वहाँ विमान बनाकर निवास करो।

उस समय बोधिसत्व हिमालय में एक वृक्ष-देवता के रूप में निवास किया करते थे। उन्होंने अपने साथियों को परामर्श दिया—तुम लोग विमान बनाने के लिए व्यर्थ ही बहुत से वृक्षों का नाश करोगे। मैंने इस शाल वन में विमान बनाया है। तुम लोग भी इसी के चारों ओर निवास करो। वृक्ष-देवताओं में जो लोग बुद्धिमान थे, उन्होंने तो बोधिसत्व की बात मान ली; पर जो लोग मूर्ख थे, उन्होंने कहा—हम लोग वन में क्यों रहने लगे। ग्रामों, नगरों और राजधानियों आदि के बाहर और आस-पास रहने में बहुत सुभीता होगा। जो देवता ऐसे स्थानों में निवास करते हैं, वे अपने भक्तों से अनेक उपहार पाते हैं। इस प्रकार वे देवता लोग बस्तियों के आस पास जाकर बड़े-बड़े वृक्षों पर रहने लगे।

संयोग से एक दिन भीषण आँधी आई। यद्यपि पुराने वृक्षों की जड़ बहुत दृढ़ थी और उनकी अनेक शाखाएँ-प्रशाखाएँ थीं, तथापि वे उस भीषण आँधी का वेग न सह सके। उनको शाखाएँ और प्रशाखाएँ छिन्न-भिन्न हो गई और कांड तथा प्रकांड आदि टूट गए; और बहुतेरे वृक्ष तो जड़ मूल से ही उखड़ गए। पर वह आँधी शाल वृक्षों का कुछ भी न बिगाड़ सकी। जिन वृक्ष-देवताओं के विमान टूट गए थे, वे अपने बाल-बच्चों को लेकर हिमालय की ओर चल पड़े और वहाँ पहुँचकर उन्होंने शाल वन के निवासी देवताओं से अपनी दुःख भरी कहानी कही। उन सब देवताओं ने बोधिसत्व के पास जाकर इन सब लोगों के आने का समाचार कहा। सब बातें सुनकर बोधिसत्व ने कहा—इन लोगों ने मेरे सत्परामर्श के अनुसार काम नहीं किया, इसीलिए इनकी यह दुर्दशा हुई। इसके उपरांत उन्होंने नीचे लिखे आशय की गाथा कहकर धर्म की व्याख्या की—

वनों में बहुत से वृक्ष पास-पास होते हैं; इसलिए उन्हें आँधी आदि का कोई भय नहीं रहता। पर जो वृक्ष अकेला रहता है, उसका निस्तार प्रायः असंभव हुआ करता है। इसी प्रकार जो लोग एक स्थान पर मिल-जुलकर रहते हैं, उनको कभी शत्रुओं का भय नहीं होता। पर जब बुद्धि-दोष के कारण कलह उपस्थित होता है, तब अवश्य ही कुल का नाश होता है।

बोधिसत्व ने इस प्रकार का उपदेश किया था। इसके उपरांत जीवन का अवसान होने पर वे अपने कर्मों के अनुरूप फल भोगने के लिए दूसरे लोक में चले गए।

स्रोत :
  • पुस्तक : जातक कथा-माला, पहला भाग (पृष्ठ 115)
  • प्रकाशन : साहित्य-रत्नमाला कार्यालय

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