Font by Mehr Nastaliq Web

नागमती वियोग (सोलह)

nagamti wiyog (solah)

मलिक मोहम्मद जायसी

अन्य

अन्य

मलिक मोहम्मद जायसी

नागमती वियोग (सोलह)

मलिक मोहम्मद जायसी

और अधिकमलिक मोहम्मद जायसी

    रोइ गँवाएउ बारह मासा। सहस सहस दु:ख एक एक साँसा॥

    तिल तिल बरिस बरस बरु जाई। पहर पहर जुग जुग सिराई॥

    सो आउ पिउ रूप मुरारी। जासों पाव सोहाग सो नारी॥

    साँझ भए झुरि झुरि पँथ हेरा। कौनु सो घरी करै पिउ फेरा॥

    दहि कोइल भै कंत स्नेहा। तोला माँस रहा नहिं देहा॥

    रकत रहा बिरह तन गरा। रती रती होइ नैनन्हि ढरा॥

    पाव लागि चेरी धनि हाहा। चूरा नेहु जोरु रे नाहा॥

    बरिस देवस धनि रोइ कै हारि परी चित झाँखि।

    मानुस घर घर पूँछि कै पूँछै निसरी पाँखि॥

    भावार्थ: नागमती ने रो-रोकर बारह मास बिता दिए। वह एक-एक साँस में सहस्र-सहस्र दुःख पाती थी। तिल-तिल समय बरस-बरस का बल लेकर बीतता था। एक-एक पहर युग-युग हो रहा था, बीतता था। रूप में कृष्ण की भाँति सुंदर वह प्रियतम नहीं आता, जिससे वह बाला अपना सुहाग पावे। साँझ होने पर मैं उत्सुकता पूर्वक स्मरण करके उसका मार्ग देखती हूँ। वह कौन-सी घड़ी होगी जब प्रियतम फेरा करेगा! मैं कंत के स्नेह में जलकर काली हो गई हूँ। देह पर तोले भर भी माँस नहीं रहा। रक्त नहीं रह गया। विरह में वह शरीर से सब निचुड़ गया और रत्ती-रत्ती होकर नेत्रों से ढुलक गया। हे कंत, आपकी चेरी यह युवती पाँव पड़ती और हाहा खाती है। अब टूटा हुआ स्नेह पुनः जोड़ो।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पदमावत (पृष्ठ 358)
    • रचनाकार : मलिक मोहम्मद जायसी
    • प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
    • संस्करण : 2007

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए