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सौंदर्य वर्णन (नौ)

saundarya warnan (nau)

कुतुबन

अन्य

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कुतुबन

सौंदर्य वर्णन (नौ)

कुतुबन

और अधिककुतुबन

    कठिन कठोर पयोहर नारी। जनु कुंभस्थल सदल संभारी।

    कंवल बरन कुच उठे अमोला। तेहि पर बैठ भंवर रंग भोला।

    तरल तीख उर लागहिं जाकें। छाती फूट पल हि महं ताकें।

    तेहिं डर नियर आवइ कोई। देखत मरइ नियर नहि होई।

    भूलि परे चख जाइ समाहीं। सिर धरि मरे हुं आवहिं ताहीं।

    कनक कलस उर कामिनि रस भरि धरे अनंत।

    देखिय छुवइ पाइय कुंभस्थल मैमंत॥

    उस नारी के पयोधर कठिन और कठोर हैं, मानो हाथी के कुंभस्थल हों जो पत्र-रचना करके सजाए हुए हों। बंधे कमल की भांति उसके अनमोल कुच उठे हुए हैं और उन के काले भाग ऐसे हैं मानो उनके रंगों पर भूले हुए भ्रमर बैठे हों। वे तरल और तीक्ष्ण कुच जिसके हृदय में लग जाएँ, उसकी छाती पल भर में फूट जाए। इसी डर से उनके निकट कोई नहीं आता है। उन्हें देख-देख कर कोई मरे भले ही, निकट कोई नहीं जाता है। चूक हो जाने पर वे आँखों में जाकर समा जाते हैं। सिर पटक-पटक कर कोई मरे, तब भी वे उसे प्राप्त नहीं होते हैं। उन कनक-कलशों में कामिनी ने अनंत रस भरकर रख छोड़ा है। भले ही उन्हें देख लीजिए छूने पाइयेगा, ऐसे मदोन्मत्त वे कुंभस्थल हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : मृगावती (पृष्ठ 52)
    • संपादक : माताप्रसाद गुप्त
    • रचनाकार : कुतुबन
    • प्रकाशन : प्रामाणिक प्रकाशन, आगरा
    • संस्करण : 1986

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