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रुबाइयाँ (एन.सी. ई.आर.टी)

rubaiyan

फ़िराक़ गोरखपुरी

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फ़िराक़ गोरखपुरी

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    नोट

    प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा बारहवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।

     

    आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी

    हाथों पे झुलाती है उसे गोद-भरी

    रह-रह के हवा में जो लोका देती है

    गूँज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी

     

    नहला के छलके-छलके निर्मल जल
    से उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके
    किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को
    जब घुटनियों में ले के है पिन्हाती कपड़े


    दीवाली की शाम घर पुते और सजे
    चीनी के खिलौने जगमगाते लावे
    वो रूपवती मुखड़े पै इक नर्म दमक
    बच्चे के घरौंदे में जलाती है दिए


    आँगन में ठुनक रहा है ज़िदयाया है
    बालक तो हई चाँद पै ललचाया है
    दर्पण उसे दे के कह रही है माँ
    देख आईने में चाँद उतर आया है


    रक्षाबंधन की सुबह रस की पुतली
    छायी है घटा गगन की हलकी-हलकी
    बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे
    भाई के है बाँधती चमकती राखी


    *रुबाई उर्दू और फ़ारसी का एक छंद या लेखन शैली है, जिसमें चार पंक्तियाँ होती हैं। इसकी पहली, दूसरी और चौथी पंक्ति में तुक (क़ाफ़िया) मिलाया जाता है तथा तीसरी पक्ति स्वच्छंद होती है।

                       

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    फ़िराक़ गोरखपुरी

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    स्रोत :
    • पुस्तक : आरोह (भाग-2) (पृष्ठ 51)
    • रचनाकार : फ़िराक़ गोरखपुरी
    • प्रकाशन : एन.सी. ई.आर.टी
    • संस्करण : 2022

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