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ब्याह कर मुझको, दिया

byaah kar mujhko, diya

इति शिवहरे

अन्य

अन्य

इति शिवहरे

ब्याह कर मुझको, दिया

इति शिवहरे

और अधिकइति शिवहरे

    ब्याह कर मुझको, दिया

    सुंदर, नवल परिवेश बाबा!

    जा रही परदेश बाबा!

    द्वार-तक कर दो विदा तुम, अंक में अपने उठाए।

    ये अनागत-काल में अधिकार मिल पाए पाए!

    है बहुत संभव कि अब व्यवहार में अंतर रहेगा।

    मंद-गति, संकोचमय सिमटा हुआ सा स्वर रहेगा।

    यह नियति है, कष्ट का,

    लाना कोई लेश बाबा।

    जा रही परदेश बाबा!

    दूर क्या, नजदीक जाने से अकेले, रोकते थे!

    दृष्टि से ओझल हुई तो घर-भरे को टोकते थे।

    किस तरह,पाषाण हिय कर, हो खड़े प्रणिपात में तुम?

    सर्वदा को सौंपते, मुझको अपरिचित हाथ में तुम।

    किसलिए ये रख रहे हो,

    आज दो-दो वेश बाबा?

    जा रही परदेश बाबा!

    हो नहीं, कृशकाय चिंता में, स्वयं का ध्यान रखना!

    हाँ! रहूँगी मैं सुखी-सानंद तुम निश्चिंत रहना।

    परिजनों के प्रति, मृदुलता, शिष्टता, से ही रहूँगी।

    अब झगडूँगी किसी से, नेह में सब बाँध लूँगी।

    भेजते रहना कुशल-मंगल,

    सुखद-संदेश बाबा!

    जा रही परदेश बाबा!

    स्रोत :
    • रचनाकार : इति शिवहरे
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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