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मैं क्यों प्यार किया करता हूँ

mai.n kyo.n pyaar kiya karta huu.n

गोपालदास नीरज

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गोपालदास नीरज

मैं क्यों प्यार किया करता हूँ

गोपालदास नीरज

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    मैं क्यों प्यार किया करता हूँ?

    सर्वस देकर मौन रुदन का क्यों व्यापार किया करता हूँ?

    भूल सकूँ जग की दुर्घातें उसकी स्मृति में खोकर ही

    जीवन का कल्मष धो डालूँ अपने नयनों से रोकर ही

    इसीलिए तो उर-अरमानों को मैं छार किया करता हूँ।

    मैं क्यों प्यार किया करता हूँ?

    कहता जग पागल मुझसे, पर पागलपन मेरा मधुप्याला

    अश्रु-धार है मेरी मदिरा, उर-ज्वाला मेरी मधुशाला

    इससे जग की मधुशाला का मैं परिहार किया करता हूँ।

    मैं क्यों प्यार किया करता हूँ?

    कर ले जग मुझसे मन की पर, मैं अपनेपन में दीवाना

    चिंता करता नहीं दु:खों की, मैं जलने वाला परवाना

    अरे! इसी से सारपूर्ण-जीवन निस्सार किया करता हूँ।

    मैं क्यों प्यार किया करता हूँ?

    उसके बंधन में बँध कर ही दो क्षण जीवन का सुख पा लूँ

    और उच्छृंखल हो पाऊँ, मानस-सागर को मथ डालूँ

    इसीलिए तो प्रणय-बंधनों का सत्कार किया करता हूँ।

    मैं क्यों प्यार किया करता हूँ?

    स्रोत :
    • पुस्तक : गीत जो गाए नहींं (पृष्ठ 52)
    • रचनाकार : गोपालदास नीरज
    • प्रकाशन : डायमंड पॉकेट बुक्स
    • संस्करण : 2019

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