रति छबि हारी, राधिका प्यारी

rati chhabi hari, radhika pyari

राधेश्याम कथावाचक

राधेश्याम कथावाचक

रति छबि हारी, राधिका प्यारी

राधेश्याम कथावाचक

रति छबि हारी, राधिका प्यारी, नंद नंदन मन्मथ मोहनी।

ठुमकर ठुम, छुमकर छुम, नाचता दोऊ जन कुंज भवन॥

नवल विमल चंचल ब्रजनारी, नाच रही हैं मटक-मटक।

मास पूर्ण को पूर्ण चंद्रमा, शरच्चंद्रिका रही छटक॥

उत वंशी की ध्वनि मनमोहिनि, इत छुम-छुम चरणन की पटक।

सचर अचर भये, अचर सचर भये, शंभू समाधी गई भटक।

छनन-छनन छन बाजत घुंघरू, धमक-धमक पड़े धरणि चरन॥

ठुमक-ठुमक ठुम छुमक-छुमक छुम॥

मान किया जब सखियोंने, तब ग़ायब हो गये नागर नट।

अधिक प्रेम के कारण निज संग, लई वृषभानुसुता भटपट॥

अति व्याकुल ब्रजनारी सारी, डोलत ढूँढ़त यमुना तट।

कीनों कीर्त्ति-सुता मद तब हीं, बेहद ग़ायब भये नटखट॥

सबने मद जब कीनो रद, तब प्रकटे मनसिज मदमर्दन।

ठुमक-ठुमक ठुम छुमक-छुमक छुम॥

रास विलास कियो अति भारी, कौन करे ताको वर्णन।

कालिंदी जल अचल भयो, उडुगण भूले हैं चाल चलन॥

मदन मगन और लज्जित भयो तब, आयो चरण शरण निर्धन।

वायु सुरेश शेषहू भूले, भूले मुनिजन ब्रह्म मनन॥

त्रिपुरारी नारी तनु धार्यो, विरंचि भूल्यो वेद पढ़न।

ठुमक-ठुमक ठुम छुमक-छुमक छुम॥

उडुगण में जिमि चंद्र सुशोभित, अस प्रकार राजत मोहन।

जितनी थीं ब्रजबाल लाल, उतने ही रूप किये तेहि छिन॥

एक मास की रात भई, तब रास विलास कियो भगवन।

जब रास की इच्छा भई पूरण, रास कियो तब संपूरन॥

‘राधेश्याम’ ग़ुलाम मगन मन, भक्ति-दान आयो मांगन।

ठुमक-ठुमक ठुम छुमक-छुमक छुम॥

स्रोत :
  • पुस्तक : राधेश्याम-विलास (पृष्ठ 29)
  • रचनाकार : राधेश्याम कथावाचक
  • प्रकाशन : राधेश्याम पुस्तकालय, बरेली
  • संस्करण : 1925

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