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दिल्ली-दुखिया

dilli dukhiya

जय चक्रवर्ती

अन्य

अन्य

जय चक्रवर्ती

दिल्ली-दुखिया

जय चक्रवर्ती

और अधिकजय चक्रवर्ती

    ये दिल्ली है

    दिल्ली-दुखिया क्या-क्या सहती है!

    हर टोपी–कुर्ता–झँडा

    इसको फुसलाता है

    जो भी आता घाव नया—

    देकर ही जाता है

    मगर नहीं ये कभी किसी से

    कुछ भी कहती है।

    नज़रों पर दिल्ली रहती है

    दिल्ली पर नज़रें

    दिल्ली को दिल्ली रखती हैं

    दिल्ली की ख़बरें

    कुर्सी के सपनों में केवल

    दिल्ली रहती है।

    नित्य सुबह से शाम बैठ

    सत्ता के कोठे पर

    पल-पल रहती दिल्ली ख़ुद ही

    बिकने को तत्पर

    रोज़ सँवरती बाहर से

    भीतर से ढहती है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : जय चक्रवर्ती
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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