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ये कैसी दोपहरी है

ye kaisi dopahri hai

अन्नू रिज़वी

अन्नू रिज़वी

ये कैसी दोपहरी है

अन्नू रिज़वी

ये कैसी दोपहरी है

सर पे सूरज और नैनों में

रात भोर से ठहरी है

ये कैसी दोपहरी है

पेड़ से छन के धूप सजी है

छाँव में जैसे आग लगी है

सूरज का देखो पागलपन

झुलसाए है धरती का तन

भोर में जिससे प्रीत हुई थी

साँझ ढले वो बैरी है

ये कैसी दोपहरी है

धूप से बचके छाँव के नीचे

कागा बैठा आँखें मीचे

डाल पे कोयल नींद के मारे

देख रही है दिन में तारे

चाँद के संग कल रात जगी थी

नींद तभी तो गहरी है

ये कैसी दोपहरी है

याद आता है अपना बचपन

गाँव की बगिया घर का आँगन

ख़ुशियाँ लेके पेड़ पे चढ़ना

बीते दिन से आगे बढ़ना

खट्टे-खट्टे आम हैं सारे

मीठी-मीठी कैरी है

ये कैसी दोपहरी है

स्रोत :
  • रचनाकार : अनु रिज़वी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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