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जो सृजन न हो

jo srjan na ho

विनोद श्रीवास्तव

अन्य

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विनोद श्रीवास्तव

जो सृजन न हो

विनोद श्रीवास्तव

और अधिकविनोद श्रीवास्तव

    जो आग नहीं

    दिखती जल में

    वह हममें हो तो बात बने

    पानी जितना ही बहता है

    उससे भी ज़्यादा दहता है

    इस दहने के ही उपक्रम में

    वह जीवन की लय गहता है

    जो धार नहीं

    दिखती थल में

    वह हममें हो तो बात बने

    शिखरों के चूर-चूर होने में—

    ही उनकी मर्यादा है

    जो उन्नत शीश लिए घूमें

    उनका आकर्षण आधा है

    जो सृजन हो

    विप्लव पल में

    वह हममें हो तो बात बने

    होते ही भोर सूर्य हों हम

    सिर पर हो धूप नीम हो लें

    संध्या हो तो चंद्रमा बनें

    साँसों में छंद नया घोलें

    जो गूँज नहीं हो

    साँकल में

    वह हममें हो तो बात बने

    स्रोत :
    • रचनाकार : विनोद श्रीवास्तव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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