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चंदा आधी रात का

chanda aadhi raat ka

हरिहर प्रसाद चौधरी ‘नूतन’

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और अधिकहरिहर प्रसाद चौधरी ‘नूतन’

    हँस-हँस लिखता गल्प,

    डूबते तारों के हालात का

    घाटी में छिपकर मुस्काए,

    चंदा आधी रात का!

    दूर नदी की लहरें नाचें

    सन्नाटे की बीन पर

    नींद सो रही ओढ़ सपन को

    कुहरे के क़ालीन पर

    बादल का टुकड़ा जैसे

    पंथी भटका बरात का

    घाटी में छिपकर मुस्काए,

    चंदा आधी रात का!

    निर्झरणी मचले, कि प्रसव की

    घड़ियों में भी शोख़-सी

    रेत खड़ी गुमसुम, उजड़ी

    बाँझिन की ऊसर कोख-सी

    दर्द पी रहा गगन अकेले

    मौसम के आघात का

    घाटी में छिपकर मुस्काए

    चंदा आधी रात का!

    गंध टहलने चली कुआँरी

    यों खंडित सिंगार में

    पाँच बजे के बाद, मजूरा

    ज्यों गुदरी बाज़ार में

    छाया करे हिसाब मालकिन-सी,

    खरचे दिन-रात का

    घाटी में छिपकर मुस्काए,

    चंदा आधी रात का!

    स्रोत :
    • रचनाकार : हरिहर प्रसाद चौधरी ‘नूतन’
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए सतीश नूतन द्वारा चयनित

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