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अब तुम्हारा प्यार भी

ab tumhaara pyaar bhii

गोपालदास नीरज

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गोपालदास नीरज

अब तुम्हारा प्यार भी

गोपालदास नीरज

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    अब तुम्हारा प्यार भी मुझको नहीं स्वीकार प्रेयसी!

    चाहता था जब हृदय बनना तुम्हारा ही पुजारी,

    छीनकर सर्वस्व मेरा तब कहा तुमने भिखारी,

    आँसुओं से रात दिन मैंने चरण धोए तुम्हारे,

    पर भीगी एक क्षण भी चिर निठुर चितवन तुम्हारी,

    जब तरस कर आज पूजा-भावना ही मर चुकी है,

    तुम चलीं मुझको दिखाने भावमय संसार प्रेयसि!

    अब तुम्हारा प्यार भी मुझको नहीं स्वीकार प्रेयसी!

    भावना ही जब नहीं तो व्यर्थ पूजन और अर्चन,

    व्यर्थ है फिर देवता भी, व्यर्थ फिर मन का समर्पण,

    सत्य तो यह है कि जग में पूज्य केवल भावना ही,

    देवता तो भावना की तृप्ति का बस एक साधन,

    तृप्ति का वरदान दोनों के परे जो-वह समय है,

    जब समय ही वह तो फिर व्यर्थ सब आधार प्रेयसी!

    अब तुम्हारा प्यार भी मुझको नहीं स्वीकार प्रेयसी!

    अब मचलते हैं नयनों में कभी रंगीन सपने,

    हैं गए भर से थे जो हृदय में घाव तुमने,

    कल्पना में अब परी बनकर उतर पाती नहीं तुम,

    पास जो थे हैं स्वयं तुमने मिटाये चिह्न अपने,

    दग्ध मन में जब तुम्हारी याद ही बाक़ी कोई,

    फिर कहाँ से मैं करूँ आरंभ यह व्यापार प्रेयसी!

    अब तुम्हारा प्यार भी मुझको नहीं स्वीकार प्रेयसी!

    अश्रु-सी है आज तिरती याद उस दिन की नज़र में,

    थी पड़ी जब नाव अपनी काल तूफ़ानी भँवर में,

    कूल पर तब हो खड़ीं तुम व्यंग मुझ पर कर रही थीं,

    पा सका था पार मैं ख़ुद डूबकर सागर-लहर में,

    हर लहर ही आज जब लगने लगी है पार मुझको,

    तुम चलीं देने मुझे तब एक जड़ पतवार प्रेयसी!

    अब तुम्हारा प्यार भी मुझको नहीं स्वीकार प्रेयसी!

    स्रोत :
    • पुस्तक : गीत जो गाए नहींं (पृष्ठ 3)
    • रचनाकार : गोपालदास नीरज
    • प्रकाशन : डायमंड पॉकेट बुक्स
    • संस्करण : 2019

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