Font by Mehr Nastaliq Web

संसार की रचना

sansar ki rachna

अन्य

अन्य

परमात्मा पोनोमोसोर ने एक दिन सोचा कि स्वर्ग से अलग हटकर कोई दुनिया बनाई जाए। उसने विचार किया और संसार बना दिया। संसार बनाने के बाद उसे लगा कि हलचलविहीन संसार तो अधूरा संसार है। अतः उसमें कोई हलचल होनी चाहिए। इस निमित्त पोनोमोसोर ने मिट्टी की दो मूर्तियाँ बनाईं। ये मूर्तियाँ थीं एक पुरुष की और एक स्त्री की। फिर उन मूर्तियों को बरगद के एक पेड़ के खोह में रख दिया। मूर्तियों के मुँह में बरगद का दूधिया रस टपका जिससे वे जीवित हो गईं। इनकी संख्या बढ़ी और जल्दी ही भोजन की कमी होने लगी। उन्होंने पोनोमोसोर से प्रार्थना की वे उनके लिए और भोजन की व्यवस्था करें। तब पोनोमोसोर ने तेज़ हवा चलाकर पेड़ों के कुछ पत्ते हवा में उड़ा दिए जो पक्षियों में परिवर्तित हो गए।

लोगों ने फलदार वृक्षों को काट डाला जिससे पोनोमोसोर नाराज़ हो गए और उन्होंने मनुष्यों को दंड देने के लिए बाढ़ को भेजा। बाढ़ ने अधिकांश मनुष्यों को डुबा दिया। जो मनुष्य बचे वे पहाड़ों पर भाग गए।

कुछ समय बाद मनुष्यों ने अपने कर्मों से पोनोमोसोर को पुन: नाराज़ कर दिया। इस बार पोनोमोसोर ने आग की वर्षा की जिससे एक भाई और एक बहन को छोड़कर सभी मनुष्य मर गए। वे भाई-बहन गुफ़ाओं में छिपकर रहने लगे। तब तक पोनोमोसोर का क्रोध शांत हो गया। उन्होंने पक्षियों के द्वारा भाई-बहन की ख़ोज कराई तथा उन्हें आपस में संबंध बनाकर संतति बढ़ाने तथा संसार में हलचल उत्पन्न करने का आदेश दिया।

इस प्रकार अंततः सही अर्थों में संसार की रचना संपन्न हुई।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 307)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

संबंधित विषय

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

रजिस्टर कीजिए