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राज्य का विस्तार

rajya ka vistar

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प्राचीनकाल में चम्पकनगर नाम का राज्य था। वहाँ का राजा बहुत प्रतापी और लोकप्रिय था। राजा का एक पुत्र था जो अपने पिता का आज्ञाकारी था।

एक वार राजकुमार के मन में विचार आया कि वर्षों से उनका राज्य एक ही सीमा में बंधा हुआ है। अत: अब इसका विस्तार किया जाना चाहिए। राजकुमार ने इस संबंध में अपने पिता से चर्चा की।

‘तुम सही कह रहे हो, अब हमारे राज्य का विस्तार होना चाहिए। तुम राज्य की देख-भाल करो, मैं राज्य के विस्तार के लिए निकल पड़ता हूँ।’ राजा ने राजकुमार से कहा।

‘नहीं पिता जी, यह विचार मुझे आया है अत: मैं ही जाऊँगा। आप राज्य का काम-काज सम्हालिए और मैं सेना सहित निकल पड़ता हूँ।’ राजकुमार ने कहा।

‘ठीक है। लेकिन एक बात का ध्यान रखना कि तुम जिस राज्य को जीतकर हमारे राज्य में मिलाना, उसकी संस्कृति और उसके परिवेश को अपनाने का प्रयास करना। तभी तुम उस राज्य को अधिक समय तक अपने आधीन रख सकोगे।’ राजा ने राजकुमार को समझाया।

राजकुमार ने अपने पिता की बात गाँठ बाँध ली और पिता से अनुमति लेकर राज्य का विस्तार करने का अभियान चलाया और वह सेना लेकर निकल पड़ा।

उसने मेघना नदी पार की और बर्मा के अराकान नामक राज्य पर अधिकार कर लिया। राजकुमार वहीं निवास करने लगा। उसने बर्मी भाषा सीखी और बुद्ध का अनुयायी बन गया। उस राजकुमार के समय में दीर्घकाल तक चकमाओं का शासन चंपकनगर से अराकान तक था।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 341)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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