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दूसरे मुल्क में

dusre mulk mein

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एक आदमी की शादी होते ही उसके पिता का निधन हो गया। उसके ससुराल वालों को बहुत दुख हुआ। सास ने कहा, “बेचारा बिलकुल अकेला हो गया। अब वह हमारी बेटी को ले जाए तो अच्छा है। उसे संदेशा भिजवा दो। अच्छी पत्नी से बढ़कर कोई मित्र नहीं होता।”

संदेशा मिलते ही जामाता सज-धज कर घोड़ी पर बैठा और ससुराल के लिए चल पड़ा। वह जंगल से होकर जा रहा था कि उसने साँप और नेवले को लड़ते देखा। वह उनकी लड़ाई देखने के लिए रुक गया। साँप लहूलुहान हो गया था। जामाता ने सोचा, “अगर लड़ाई चलती रही तो साँप का मरना तय है। साँप नेवले का मुक़ाबला नहीं कर सकता। इन्हें छुड़ाना चाहिए।” उसने उन्हें अलग करने की बहुत कोशिश की, पर उसे सफलता नहीं मिली। नेवला उछलकर फिर-फिर साँप को जा दबोचता। सो उसने तलवार निकाली और क्रुद्ध नेवले के दो टुकड़े कर दिए।

इससे निपटकर वह अपनी घोड़ी की ओर बढ़ा। लेकिन इससे पहले कि वह उस पर सवार हो पाता साँप उसकी ओर झपटा और उसे अपनी कुंडली में जकड़ लिया। जामाता ने कहा, “क्या कर रहे हो? मैंने तुम्हारी जान बचाई है!”

साँप ने कहा, “तुम ठीक कहते हो। तुमने मुझे दुश्मन से बचाया है। पर मैं तुम्हें नहीं छोड़ूँगा, मैं तुम्हें खाऊँगा।”

जामाता ने आश्चर्य, भय और गुस्से से कहा, “लेकिन क्यों? क्या भलाई के बदले भलाई नहीं करनी चाहिए? मैंने तुम्हारी जान बचाई और तुम मुझे मारोगे? हमारे मुल्क में तो ऐसा नहीं होता!”

साँप ने कहा, “पर हमारे यहाँ की रीत अलग है। हम भलाई का बदला बुराई से चुकाते हैं।”

जामाता ने तरह-तरह के तर्क देकर उसे समझाने की भरसक चेष्टा की, पर साँप ने उसकी एक सुनी। वह अजगर है और भूखा है, वह तो उसे खाएगा। आख़िरकार जामाता ने कहा, “अच्छी बात है नागराज, तुम मुझे खा सकते हो। पर तुम्हें मुझे आठ दिन की मोहलत देनी होगी, ताकि मैं अपने मामले सलटा सकूँ। आठवें दिन मैं वापस जाऊँगा। तब तुम मुझे खा लेना।”

साँप मान गया, “तुम भले आदमी लगते हो। ठीक है, जाओ। पर आठवें दिन जाना!”

साँप ने उसे छोड़ दिया। जामाता घोड़ी पर बैठकर चल पड़ा।

ससुराल वालों ने उसकी ख़ूब आवभगत की। पति को देखकर दुलहन बहुत ख़ुश हुई। पर जामाता के मुरझाए चेहरे पर चमक नहीं आई। दो एक दिन बाद ससुराल वालों ने पूछा, “क्या बात है? लगता है पिता की मौत से आप बहुत दुखी हैं। हमारी कोई मदद चाहिए तो कहिए! संकोच मत कीजिए!” पर उसकी चुप्पी नहीं टूटी। सातवें दिन उन्होंने बेटी से कहा, “क्या वे नाराज़ हैं? वे बुझे-बुझे क्यों हैं?” बेटी ने पता लगाने की कोशिश की, पर उसे भी सफलता नहीं मिली।

आठवाँ दिन आया। जामाता ने कहा, “अब मैं चलूँगा।” माँ-बाप ने भारी मन से बेटी को विदा किया। बैलगाड़ी दहेज से ऊपर तक भरी थी। दूल्हा-दुल्हन के बैठते ही बैलगाड़ी चल पड़ी।

ज्यों ही वे गाँव से बाहर निकले जामाता ने दुल्हन और चाकरों से कहा, “मुझे पता चल गया है कि मैं रास्ते में मर जाऊँगा। तुम सब वापस चले जाओ!”

डरे-सहमे चाकर वापस चले गए। पर दुल्हन ने कहा, “तुम मरोगे तो मैं जी कर क्या करूँगी! मैं वापस नहीं जाऊँगी।” हठी दुल्हन ने उसका साथ नहीं छोड़ा।

नियत स्थान पर पहुँचकर दूल्हा गाड़ी से नीचे उतरा और साँप को आवाज़ दी, “मैं गया हूँ। मैंने अपना वचन पूरा किया। मुझे खाना चाहो तो आओ, मैं तैयार हूँ।”

दुल्हन ने ये दिल दहलाने वाले शब्द सुने और उसके पीछे चल दी। शीघ्र ही उन्होंने भयंकर फुफकार सुनी। एक भीमकाय अजगर रेंगता हुआ आया और दूल्हे को निगलने के लिए बढ़ा। दुल्हन चीख़ उठी, “ठहरो! तुम इस अभागे को क्यों खाना चाहते हो?” साँप ने उसे पूरी बात बताई कि कैसे वह और नेवला लड़ रहे थे और कैसे उसके पति ने नेवले को मारकर उसकी जान बचाई। अंत में साँप ने कहा, “हम नेकी का बदला बदी से चुकाते हैं। यह हमारा रिवाज़ है।”

दुल्हन ने तमाम नीति वचनों का हवाला दिया, अनेक दलीलें दीं, पर विकराल साँप का मन नहीं बदला। तब दुल्हन ने कहा, “तुम कहते हो कि तुम्हारे मुल्क में लोग नेकी के बदले बदी करते हैं। बड़ा अजीब रिवाज है! यह किसी भी नज़रिए से ठीक नहीं। आख़िर इसका कारण क्या है? ऐसा उलटा रिवाज शुरू कैसे हुआ?”

अजगर ने कहा, “वे ताड़ के पेड़ देख रही हो? जाओ, उनसे पूछो!”

दुल्हन ताड़ के पेड़ों के पास गई और चिल्लाकर पूछा, “इस मुल्क में लोग भलाई करने वाले के साथ बुराई करते हैं, इसका कारण क्या है?” बीच के पेड़ ने दो टूक जवाब दिया, “हमें गिनो! अब हम पाँच हैं। पर पहले हम छह थे—तीन जोड़े। छठा पेड़ खोखला था। उसके तने में बड़ी कोटर थी।” फिर उसने दुल्हन को छठे पेड़ की कथा सुनाई—

बहुत बरस पहले हमारे इलाक़े के एक घर में चोरी हुई। लोगों ने चोरों का पीछा किया। चोर आगे और वे पीछे। चोर भागता हुआ यहाँ आया। चाँदनी रात थी। चोर छठे ताड़ की कोटर में छुप गया। पीछा करने वालों की आहट सुनकर चोर ने ताड़ से विनती की, “ओ पेड़, मुझे बचा लो!” उसकी फ़रियाद सुनकर ताड़ ने अपनी कोटर के किनारों को सटा दिया और उसे अपने आलिंगन में छुपा लिया। पीछा करने वालों ने हम छहों पेड़ के आस-पास उसे ख़ूब ढूँढ़ा, पर वह उन्हें नहीं मिला। हारकर वे चले गए। ख़तरा टल गया तो ताड़ ने कोटर का मुँह फिर खोल दिया। ताड़ का पेड़ बूढ़ा हो जाता है तो उससे बहुत अच्छी ख़ुशबू आती है। कुछ लोग तो यहाँ तक मानते हैं कि उनके अंदर चंदन बनती है। सो चोर ताड़ से बाहर आया तो उसके रोम-रोम में चंदन की सुवास बसी हुई थी। वह जहाँ भी जाता चारों ओर चंदन की भीनी-भीनी गंध फैल जाती। चंदन की सुवास हमेशा के लिए उसके शरीर में रच-बस गई। एक बार वह चोर किसी शहर में गया। उसके पास से निकलते एक आदमी ने सहसा ठिठककर पूछा, “इतना बढ़िया इत्र तुम्हें कहाँ मिला?”

चोर ने कहा, “इत्र? मेरे पास कोई इत्र-वित्र नहीं है।”

राहगीर ने गहरी साँस ली और कहा, “वाह, कितनी अच्छी ख़ुशबू है! यह इत्र मुझे दे दो, अच्छे दाम दूँगा।”

चोर ने फिर कहा, “अजीब आदमी हो! कहा न, मेरे पास कोई इत्र नहीं है। तुम्हारा नाक ख़राब हो गया है।”

राहगीर बहुत तेज़ आदमी था। वह राजा के पास गया और उससे कहा, “शहर में एक परदेशी आया है। उसके पास बहुत बढ़िया इत्र है। शायद वह महाराज को देने के लिए राज़ी हो जाए।”

राजा ने चोर को पकड़ मँगवाया। पूछा, “यह इत्र तुम्हें कहाँ मिला?”

चोर ने कहा, “मेरे पास कोई इत्र नहीं है।”

“अगर तुम सीधे-सीधे इत्र दे दोगे तो मैं तुम्हें पुरस्कार दूँगा, नहीं तो इत्र के साथ-साथ तुम प्राणों से भी हाथ धो बैठोगे।”

चोर थरथर काँपने लगा। बोला, “मुझे मत मारो, मैं सब बताता हूँ।” उसने राजा को बताया कि कैसे ताड़ ने अपने हृदय में छुपाकर उसकी जान बचाई और कैसे चंदन की ख़ुशबू उसके अंग-अंग में बस गई। राजा ने कहा, “मेरे साथ चलो और बताओ कि वह अद्भुत पेड़ कहाँ है।”

जल्द ही वे यहाँ पहुँच गए। राजा ने उस ताड़ को काटकर राजमहल ले चलने का आदेश दिया। जब उस ताड़ ने यह आदेश सुना और उसे इसका कारण समझ में आया तो वह ज़ोर से चिल्लाया, “मैंने एक आदमी का जीवन बचाया इसके लिए मुझे अपने जीवन से हाथ धोना पड़ रहा है। इसलिए आज से इस जंगल में जो कोई किसी की भलाई करने की ज़ुर्रत करे उसका बदला हर सूरत में बुराई से चुकाया जाए!”

यह दुखद कथा सुनकर दुलहन वापस आई तो साँप ने कहा, “पूछ आईं? अब तो तुम्हें पतियारा हुआ कि यही हमारा रिवाज है?”

दुल्हन को स्वीकार करना पड़ा कि उसने ठीक कहा था। लेकिन जैसे ही विकराल साँप अपने शिकार को खाने के लिए बढ़ा उसने रोते हुए कहा, “फिर मेरा क्या होगा? अगर तुम्हें मेरे पति को खाना ही है तो पहले मुझे खाओ!”

साँप को यह कतई उचित नहीं लगा, “तुम्हें? पर तुमने मेरा कुछ भी तो भला नहीं किया! ही तुमने मेरा कुछ बिगाड़ा है। तुम्हें खाने की मैं सोच भी नहीं सकता।”

दुल्हन ने कहा, “लेकिन तुम मेरे पति को खा जाते हो तो मेरे जीवन में रह ही क्या जाता है! तुमने ख़ुद अभी कहा कि मैंने तुम्हारा कुछ भला नहीं किया, फिर भी तुम मेरी ख़ुशियों को मटियामेट करने पर तुले हो! ऐसा तुम कैसे कर सकते हो?”

साँप व्याकुल हो गया। दुलहन को रोते देखकर उसका मन अनुताप से भर गया। उसके पति को तो उसे खाना ही होगा, पर बेचारी दुलहन को दम दिलासा कैसे दे? उसका अहित करना ठीक नहीं। उसके लिए उसे कुछ तो करना ही होगा। सो वह वापस अपनी बांबी में गया और थोड़ी देर बाद दो जादुई गोलियाँ लेकर आया। बोला, “ये लो बावली लड़की! ये गोलियाँ निगल लो! इनसे तुम्हारे दो सुंदर बेटे होंगे। उनके पालन-पोषण में तुम्हारा जीवन कट जाएगा। बदले में वे तुम्हारी “देखभाल करेंगे। अब तुम जाओ!” दुल्हन ने गोलियाँ ले लीं। अब तक उसकी सहजबुद्धि लौट आई थी। बोली, “इनसे मेरे दो बेटे तो हो जाएँगे, पर लोग मुझ पर थूकेंगे। पति के बिना दुनिया उन्हें पाप की औलाद कहेगी।”

यह तो साँप ने सोचा ही नहीं था। वह झुँझला गया। सोचा, “स्त्रियाँ बड़ी विचित्र होती हैं।” और वापस बांबी में गया। इस बार वह फिर दो गोलियाँ लाया और व्यथित दुल्हन को देते हुए कहा, “प्रतिशोध से शायद तुम्हें कुछ शांति मिले। जब कोई तुम्हारी निंदा करे और तुम्हारे बच्चों के बारे में अंटसंट कहे तो इनमें से एक गोली अपने अंगूठे और अंगुली के बीच दबाना और हाथ को उसके ऊपर ले जाकर गोली को हौले-से रगड़ना। इससे गोली का चूरा उस पर गिरेगा और पलक झपकते धुएँ और राख में बदल जाएगा।”

दुल्हन ने पहली दो गोलियों को संभालकर अपने पल्लू में बांधा और दूसरी दो गोलियों को संदेह से देखा। फिर सहसा कुछ सोचते हुए उसने उन दो गोलियों को साँप के ऊपर ले जाकर रगड़ा और भोलेपन से कहा, “नागराज, ज़रा फिर से समझाओ! क्या इन्हें ऐसे रगड़ूँ?”

जादुई चूरे का एक कण साँप पर गिरा। वह भक-से जल उठा। अगले ही पल अजगर की ठौर धूसर राख की टेढ़ी-मेढ़ी लकीर ही पीछे रही।

दुल्हन के पीले चेहरे पर रंगत लौट आई। पति की ओर मुड़कर कहने लगी, ‘“जो भलाई करता है उसे देर-सबेर उसका फल मिलकर रहता है। बुराई का नतीजा बुरा ही होता है। तुमने भलाई की, और देखो, तुम्हें उसका पुरस्कार मिला। साँप ने बुराई की तो उसका ख़ात्मा हो गया। भगवान के यहाँ देर है अंधेर नहीं!”

दूल्हा-दुल्हन ख़ुश-ख़ुश घर गए। वे जब तक जीए सुख से जीए।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत की लोक कथाएँ (पृष्ठ 271)
  • संपादक : ए. के. रामानुजन
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2001

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