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अहिंसा

ahinsa

अन्य

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किसी धूर्त साँप ने एक मार्ग के पास डेरा डाला और हर आने-जाने वाले को काटने लगा। एक बार एक साधु उधर से निकला। साधु को देखते ही साँप उसे डसने के लिए दौड़ा। साधु ने उसे स्नेह से देखा और शांति से कहा, “तुम मुझे काटना चाहते हो, है न? आओ, अपनी इच्छा पूरी करो!”

साधु की अप्रत्याशित प्रतिक्रिया और सज्जनता से साँप अभिभूत हो गया। साधु ने कहा, “मित्र, मुझे वचन दो कि आज से तुम किसी को नहीं काटोगे!” साँप ने उसे प्रणाम किया और वचन दिया कि अब वह कभी किसी को नहीं काटेगा। साधु आगे बढ़ गया। साँप सीधा-सादा अहिंसक जीवन जीने लगा।

कुछ ही दिनों में सब जान गए कि अब इस साँप से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। बच्चे उसके साथ बहुत क्रूर व्यवहार करने लगे। वे उसे पत्थर मारते और पूँछ पकड़कर घसीटते। तमाम यातनाएँ भुगतकर भी साँप ने साधु को दिया अपना वचन नहीं तोड़ा।

कुछ समय पश्चात साधु अपने नए शिष्य से मिलने आया। उसका घायल और सूजा हुआ शरीर देखकर गुरु भीतर से हिल गया। उसने साँप से पूछा कि उसकी यह हालत कैसे हुई। साँप ने कमज़ोर आवाज़ में कहा, “गुरुदेव, आपने मुझे काटने से मना किया, पर लोग बहुत क्रूर हैं।”

साधु ने कहा, “मैंने तुम्हें काटने के लिए मना किया था, फुफकारने के लिए नहीं।”

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत की लोक कथाएँ (पृष्ठ 256)
  • संपादक : ए. के. रामानुजन
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2001

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