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लंबी दाढ़ी वाला क़ाज़ी

lambi daDhi vala kaji

अन्य

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एक क़ाज़ी दीए की रोशनी में कोई पुरानी किताब पढ़ रहा था। उसमें उसने एक जगह पढ़ा, “लंबी दाढ़ी वाले अक्सर बेवक़ूफ़ होते हैं।”

क़ाज़ी की बहुत बड़ी ख़्वाहिश थी कि लोग उसकी अक़्लमंदी का लोहा माने। हरेक की ज़ुबान पर उसकी दानिशमंदी के चर्चे हों। और उसकी दाढ़ी है कि शहर में सबसे लंबी है! सब उसे जाहिल समझते होंगे। यह सोचकर उसे बहुत दुख हुआ।

अचानक दीए पर उसकी नज़र पड़ी। बिना कोई आगा-पीछा सोचे उसने अपनी दाढ़ी को मुट्टी में पकड़ा और उसका नीचे का सिरा लौ से जलाने लगा ताकि वह छोटी हो जाए।

दाढ़ी लंबी, चिकनी और मुलायम थी। उसने फ़ौरन आग पकड़ ली। आग उसकी अंगुलियों तक पहुँची तो जलन के मारे उसने दाढ़ी को छोड़ दिया। दाढ़ी को छोड़ते ही लपट ऊपर बढ़ी और उसकी मूँछें, भौंहें, बाक़ी दाढ़ी और सर के बाल सब जल गए।

क़ाज़ी को लगा कि लंबी दाढ़ी वाले वाक़ई बेवक़ूफ़ होते हैं।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत की लोक कथाएँ (पृष्ठ 300)
  • संपादक : ए. के. रामानुजन
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2001

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