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मछली की हँसी

machhli ki hansi

अन्य

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एक व्यापारी था। वह परदेस से बहुत धन कमा कर अपने घर लौटा। उसने अपने परिवाजन को ढेर सारा पैसा दिया। इसके बाद नगर वासियों को धन से सहायता दी। इसी बीच उसे एक पोखर का पता चला जिसे उसके किसी पूर्वज ने बनवाया था। व्यापारी ने पोखर का जीर्णोद्धार कराने का विचार बनाया। उसने पोखर के पानी की सफ़ाई का आदेश दिया। पानी की सफ़ाई के दौरान एक बड़ी मछली निकली। व्यापारी ने वह मछली उपहारस्वरूप राजा के पास भिजवा दी।

राजा ने मछली की परवाह की जिससे वह मरने-मरने को हो गई। राजा ने फिर भी उसकी परवाह की। इस पर मछली ज़ोर से हँसी और उसने दम तोड़ दिया। राजा यह देखा तो उसे समझ में नहीं आया कि मछली हँसी क्यों? तब राजा ने व्यापारी को बुलाया और कहा कि ‘तुमने मछली मुझे दी थी अतः अब तुम ही बताओ कि वह मरने से पहले हँसी क्यों? यदि तुम नहीं बता सके तो मैं तुम्हें मरवा दूँगा।’

अब व्यापारी को क्या पता कि मछली क्यों हँसी थी। वह बहुत परेशान हुआ। उसे पता था कि राजा उसे मरवा देगा। व्यापारी को राजा के पास आए कई दिन हो गए थे इसलिए उसका सबसे छोटा बेटा उसे ढूँढ़ता हुआ पहुँचा।

उसे जब राजा के आदेश का पता चला तो उसने अपने पिता को ढाँढ़स बँधाया और कहा कि मैं उत्तर दे दूँगा।

दूसरे दिन व्यापारी का छोटा बेटा राजसभा में पहुँचा और उसने राजा से कहा, ‘महाराज! मछली इसलिए हँसी थी क्यों कि वह एक बोंगा (देवकन्या) थी और मरकर शाप से मुक्त हो रही थी।’

राजा इतनी बुद्धिमानी की बात सुनकर प्रसन्न हुआ और उसने व्यापारी को मुक्त कर दिया। व्यापारी अपने छोटे बेटे सहित घर लौट आया।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 313)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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