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गोरे और काले

gore aur kale

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एक बार एक कोरकू युवक बकरियाँ चराने जंगल गया। वहाँ उसने बकरियों को चरने के लिए छोड़ दिया और स्वयं एक पेड़ के नीचे बैठकर आराम करने लगा। बैठे-बैठे उसे नींद गई। नींद में उसने देखा कि एक सुंदर, गोरी देहयष्टि की युवती उसे देखकर मुस्कुरा रही है। युवक उस युवती के पास पहुँचा। युवक ने उस युवती का हाथ थाम लिया। युवती ने कोई आपत्ति नहीं की। इस पर युवक उत्साहित होकर पूछ बैठा कि ‘क्या तुम मुझसे विवाह करोगी?’

इतना सुनते ही उस युवती ने युवक का हाथ झटक दिया और मुँह बनाकर बोली, ‘तुम्हारे जैसे काले युवक से मैं तो मैं, मेरी दुश्मन भी विवाह नहीं करना चाहेगी।’

इतना कहकर युवती इठलाती हुई चली गई। युवक की नींद खुल गई। वह झटपट उठा और पास ही एक गड्ढे में भरे हुए स्थिर पानी में उसने अपना चेहरा देखा। उसने पाया कि वह सचमुच बहुत काला है। अब युवक बहुत दुखी हुआ। उसने अपनी बकरियाँ समेटीं और घर लौट पड़ा।

घर लौटने के बाद से वह गुमसुम रहने लगा। उसके चेहरे से हँसी, मुस्कुराहट ग़ायब हो गई। उसके मित्रों ने उसकी यह दशा देखी तो वे बहुत चिंतित हुए। उन्होंने युवक से उसके दुख का कारण जानने का प्रयास किया किंतु उस युवक ने अपने मित्रों को कुछ नहीं बताया। तब उस युवक के मित्र उसे पड़ियार (समाज का अतिविशिष्ट व्यक्ति) के पास ले गए। पड़ियार ने युवक को समझा-बुझाकर उससे उसके दुख का कारण पूछा।

‘हम लोग इतने काले क्यों हैं और हमसे बाहर के लोग गोरे क्यों हैं?’ युवक ने पीड़ा भरे स्वर में पूछा।

‘यह बात तुम्हें क्यों सूझी?’ पड़ियार ने पूछा।

इस पर युवक ने झिझकते हुए अपना सपना उसे सुना दिया कि किस प्रकार एक गौरवर्ण युवती उसे ठुकराकर चली गई। यह सुनकर पड़ियार ठठाकर हँस पड़ा।

‘तुम उस युवती की बात का इतना बुरा क्यों मानते हो जो तुमसे निम्न है पड़ियार ने कहा।

‘वह मुझसे निम्न कैसे हुई? वह जितनी गोरी थी और मैं उतना ही काला।’ युवक ने झुँझलाकर कहा।

‘सुनो, वह तुमसे निम्न अथवा तुमसे नीचे की कैसे हुई।’

‘हाँ, बताइए।’

‘देखो, जो तुमसे पहले पैदा हुआ वह तुमसे छोटा है या बड़ा?’

‘बड़ा।’

‘जो तुमसे पहले पैदा हुआ वह तुमसे श्रेष्ठ है या नहीं?’

‘हाँ, वह मुझसे श्रेष्ठ है। इसीलिए मैं अपने से बड़ों का आदर करता हूँ और उनके पाँव तक छूता हूँ।’ युवक ने कहा।

‘तो अब ध्यान से सुनो! जब ईश्वर ने मनुष्य को बनाना आरंभ किया तो उसके हाथ सधे हुए नहीं थे। उसके पास वही मिट्टी थी जो उसके आस-पास थी। उसी मिट्टी से ईश्वर ने सबसे पहले हमें बनाया। इसीलिए हम काले और माटी से जुड़े हुए लोग हैं। जब ईश्वर का हाथ सध गया तो उसने दूर से, बाहर गाँव से मिट्टी मँगाई और मिट्टी के पुतले बनाए। फिर उन्हें अपने सधे हुए हाथों से घिस घिसकर गोरा बना दिया। वही गोरे मनुष्य हैं। तो अब बताओ कि जब हम लोगों को ईश्वर ने गोरों से पहले बनाया तो हम उनसे बड़े, ज्येष्ठ और श्रेष्ठ हुए या नहीं?’ पड़ियार ने पूछा।

‘हाँ, आप ठीक कहते हैं। मैं व्यर्थ ही दुखी हो रहा था। दुखी तो उसे होना चाहिए कि उसने अपने से श्रेष्ठ मनुष्य को ठुकरा दिया।’ युवक की आँखें चमक उठीं। उसके होंठों पर मुस्कुराहट दौड़ गई और वह उत्साह से भर उठा।

उस दिन के बाद से कोई भी कोरकू युवक अपने शरीर के श्यामवर्ण पर दुखी नहीं होता है वरन् वह गौरव का अनुभव करता है।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 256)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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