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ब्रजी लोकगीत : पधारे जोगिन बन कै बनवारी

vrajii lokagiit : padhaare jogin ban kai banvaarii

अन्य

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रोचक तथ्य

संदर्भ—कृष्ण का योगिनी-वेश-धारण।

पधारे जोगिन बन कै बनवारी बरसाने की ओर।

मोर मुकुट मकराकृति कुंडल, ओढ़ि लियौ कारौ सो कम्बल।

कछनी रंग माँ रंग डारी, गेरू के रंग बोर॥

बरसाने जब आयौ कन्हाई, अलख अलख मुख वे उच्चारें।

पूजन कर रहे सब नर नारी, दोनों कर को जोर॥

जोगिन ते कहि राधा पियारी, कौन गाँव है कुटी तिहारी।

खूब करें तोरी खातिरदारी, चलौ हमारी ओर॥

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 303)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

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