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अवधी लोकगीत : हरि पाण्डव केरे सुलह काज गये

awadhi lokgit ha hari panDaw kere sulah kaj gaye

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रोचक तथ्य

संदर्भ—श्रीकृष्ण का दूतत्व।

हरि पाण्डव केरे सुलह काज गये, आँध सुवन दरबारा।

होत भिनसारा।। टेक।।

अति अखण्ड दरबार लाग जहवाँ,

सौ बाँधन भूपाल बैठ तहवाँ औरो बैठ दल सारा।। होत०।।1।।

भीषम, भीम, साल बलधारी,

सकुनी, द्रोन करन धनुधारी।

दुरजोधन सौहैं मानो इन्द्रराज, पहुँच्यो तहाँ नन्द कुमारा।। होत०।।2।।

उठी सभा सब हरि का देखे,

सकुनी, द्रोन हिया अति हरखे, निज आसन बैठारा।। होत०।।3।।

पूछेउ नृप आयउ प्रभु कहवाँ

कहि डारो दिल के अरमनवाँ

कहेव कृष्न सुनो नृप आज, आयँव तोहरे हितकारा।। होत०।।4।।

पाँच गाँव पाण्डव का दीजै,

कहा मानि बिग्रह ना कीजै, अति हित होय तुम्हारा।। होत०।।5।।

पूना, कनवज, सहर सितारा,

राजकरन, हसनापुर सारा,

मानहुँ नृप हमरी कुछ लिहाज, एतना उन्हें दीजै गुजारा।। होत०।।6।।

सुनत बचन बोलेउ अभिमानी,

भुइयाँ देबै जियत जिन्दगानी, हटो, अहीर गँवारा।। होत०।।7।।

उठेउ रमेसर रिस कै भारी,

मूढ़ बोलेस बैन सम्हारी,

मति-भंग भयो है कुल समाज, खल आयो काल तुम्हारा।। होत०।।8।।

श्रीकृष्ण प्रात: होते ही पांडवों की ओर से संधि हेतु धृतराष्ट्र के दरबार में गए।।टेक।।

उधर विशाल सभा हो रही थी, जहाँ सैकड़ों राजा बैठे हुए थे और सारा दल बैठा हुआ था।।1।।

भीष्म पितामह, आचार्य द्रोण, धनुर्धर कर्ण के साथ दुर्योधन ऐसे सुशोभित हो रहा था मानो वह देवराज इंद्र हो। वहीं नंदकुमार श्रीकृष्ण पहुँचे।।2।।

श्रीकृष्ण को देखकर सारी सभा उठकर खड़ी हो गई, शकुनि और द्रोणाचार्य के हृदय अति हर्षित हुए, उन्होंने उन्हें अपने आसन पर बैठाया।।3।।

महाराज धृतराष्ट्र ने पूछा—हे श्रीकृष्ण! आज कैसे आए, अपने मन की बात कहिए। कृष्ण ने कहा—हे राजन! सुनिए, मैं आपकी भलाई के लिए आया हूँ।।4।।

आप पांडवों को उनके रहने के लिए पाँच गाँव दे दीजिए। मेरा कहना मानिए, जिससे आपका बड़ा हित होगा।।5।।

मेरा कहना मानकर उन्हें गुज़ारे के लिए पूना, कन्नौज, सितारा, राजकरन और हस्तिनापुर दे दीजिए।।6।।

ऐसी बात सुनकर अभिमानी दुर्योधन बोला—मैं अपने जीवित रहते भूमि नहीं दूँगा। हे गँवार अहीर तुम दूर हटो।।7।।

रामेश्वर (गीतकार) कहते हैं कि श्रीकृष्ण जी क्रोधित होकर उठे, क्योंकि वह मूर्ख सोच-समझकर नहीं बोला। श्रीकृष्ण ने कहा—तुम्हारे सारे समाज की ही बुद्धि भ्रष्ट हो गई है। हे दुष्ट! तेरा काल गया है।।8।।

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 176)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

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