Font by Mehr Nastaliq Web

अवधी लोकगीत : मोसे करि गयो कौल करारा, गयो हो पिय प्यारा

awadhi lokgit ha mose kari gayo kaul karara, gayo ho piy pyara

अन्य

अन्य

रोचक तथ्य

संदर्भ—फागुन में पति का विरह।

मोसे करि गयो कौल करारा, गयो हो पिय प्यारा।।टेक।।

बीते माघ लवटि घर आउब, फागुन के अँधियारा।

सोई गयो बीति परतीति के औसर, नहि मानत जियरा हमारा, गयो०।।1।।

गावत गीत सबै सखियां मिलि, बाजत ढोल चिकारा।

सो सुनि सूल होत उर अन्तर, नहिं मानत जिअरा हमारा, गयो०।।2।।

कारन कवन कन्त नहिं आये, सुरति मोरि बिसराये।

केकरी प्रीति रीति रस बस भये, सजनी हमरे बनजारा, गयो०।।3।।

मेरे प्रियतम मुझसे कौल-करार करके चले गए थे।।टेक।।

उन्होंने कहा था कि मैं माघ के बीतने पर घर लौट आऊँगा, फागुन में अँधेरा हो गया है (कृष्ण पक्ष है)। वे प्रतीति के अवसर पर लगता है भूल गए। मेरा मन नहीं लगता।।1।।

सभी सखियाँ मिलकर गा रही हैं, ढोल और चिकारे बज रहे हैं। उन्हें सुनकर हृदय में पीड़ा होती है, हमारा जी नहीं मानता।।2।।

क्या कारण है कि मेरे पति नहीं आए, मेरी याद भूल गए, हे सखी! वे किसकी प्रीति रीति के वशीभूत हो गए?।।3।।

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 173)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

संबंधित विषय

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

रजिस्टर कीजिए