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ब्रजी लोकगीत : सब हिलि-मिलि के चली गोपिका

vrajii lokagiit : sab hili-mili ke chalii gopika

अन्य

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रोचक तथ्य

संदर्भ—कृष्ण द्वारा गोपियों का चीर-हरण।

सब हिलि-मिलि के चली गोपिका श्री जमुना अस्नान करन।

बस्त्र उतारि घाट पै धरि दये, फिर जल भीतर लागीं धसन॥

इतने में ही आइ गयौ कान्हा, बस्त्र लये फिर लगा चलन।

लै कै चीर कदम पै चढ़ि गयौ, वाही पै बंसी लागी बजन॥

देउ चीर महराज हमारे, हम जल भीतर खड़ी नगन।

बिन जल बाहर चीर ने दुंगो, चाहे री लाखों करो जतन॥

लाज की घाली बाहर निकरी, तन हातन से लागी ढकन।

प्रेम के बस में हाथ भी जोड़े, चीर मिले पै भईं मगन॥

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 301)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

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