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जौ तन बाग बलम कौ नीकौ

jau tan bag balam kau nikau

ईसुरी

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ईसुरी

जौ तन बाग बलम कौ नीकौ

ईसुरी

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    जौ तन बाग बलम कौ नीकौ!

    सिंचौ सुहाग अभी कौ!

    श्रीफल फरे धरे चोली में, मदरस चुअत लली कौ॥

    लेत पराग अधर के ऊपर, विकसौ कमल कली कौ॥

    ‘ईसुर’ कात बचाएँ रहयौ, छिऐ छैल गली कौ॥

    प्रिय के शरीर का यह बग़ीचा बहुत सुंदर है। यह सुहाग के अमृत से सींचा है। इसमें लगे नारियल चोली में हैं। छबीली का यौवन रस चू रहा है। कमल की विकसित कली का पराग होंठ लेते हैं। ईसुरी कहता है—इस फूल-बगिया को बचा के रखना। कहीं गली का रसिया इसे छू ले।

    स्रोत :
    • पुस्तक : ईसुरी की फागें (पृष्ठ 190)
    • संपादक : घनश्याम कश्यप
    • प्रकाशन : शब्दपीठ
    • संस्करण : 1995

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